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________________ ) )) ) ) ) ) )) ) )) ) u乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。 9555555555555555555555555555555555555 4 determining the real nature use their intellect in completing the task i through efforts. There are persons who study scriptures and practice 11 meditation daily in which they control their thoughts. There are persons who remain continuously absorbed in meditation according to code laid in scriptures. There are people who practice five major vows of the monk, who observe five Samitis, who subdue sinful activities, who have a great affection for living beings of six categories and those monks who continuously remain vigilant during their wanderings. There also those who have a sense of discernment. All such persons have practiced non violence. म विवेचन : आगम की उक्त स्पष्ट सूची के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि तीर्थंकर भगवन्तों से लेकर विशिष्ट ज्ञान के धारकों, अतिशय लोकोत्तर बुद्धि के धनियों, विविध लब्धियों से सम्पन्न उग्र तपस्वियों, महामुनियों, आहार-विहार में अतिशय संयमशील एवं ध्यानयोग निरत साधकों आदि ने इस अहिंसा भगवती म की सम्यक् रूप में निर्दोष परिपालना की है। सूत्र में बताया है-अनेक प्रकार की लब्धियों के धारक सत्पुरुषों ने इस अहिंसा भगवती की सम्यक् रूप में 卐 आराधना की है। इस प्रसंग में कुछ लब्धियों का तथा विभिन्न प्रकार की प्रतिभाओं का उल्लेख भी यहाँ किया गया है। यों तो भगवतीसूत्र में १० प्रकार की लब्धियों का वर्णन है। औपपातिकसूत्र में भगवान के विविध लब्धिधारी श्रमणों का वर्णन है तथा प्रवचन सारोद्धार आदि ग्रन्थों में भी २८ प्रकार की एवं ३१ प्रकार की 卐 लब्धियों का वर्णन मिलता है। दशाश्रुतस्कंध, औपपातिक एवं स्थानांगसूत्र आदि में विविध प्रतिभाओं का भी प्र वर्णन आता है। विस्तृत वर्णन वहाँ पर किया गया है। यहाँ उनका सामान्य परिचय इस प्रकार है आमोषधिलब्धिधारक-विशिष्ट तपस्या के प्रभाव से किसी-किसी तपस्वी में ऐसी शक्ति उत्पन्न हो जाती है कि उसके शरीर का स्पर्श होने पर सब प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं। वह तपस्वी आमखैषधिलब्धि का धारक कहलाता है। श्लेष्मौषधिलब्धिधारी-जिनका श्लेष्म-कफ रोगनाशक है। जल्लौषधिलब्धिधारी-जिनके शरीर के मैल में रोगनाशक सामान्य शक्ति हो। विगुडौषधिलब्धिधारी-जिनका मल-मूत्र, रोग विनाशक औषधि रूप हो। सर्वोषधिलब्धिधारी-जिनका मल, मूत्र, कफ, मैल आदि सभी कुछ व्याधिविनाशक हो। बीजबुद्धिधारी-जैसे छोटे बीज से विशाल वृक्ष उत्पन्न हो जाता है, उसी प्रकार बीजक के समान एक साधारण अर्थ के ज्ञान के सहारे अनेक अर्थों को विशद् रूप से ज्ञान करने की क्षमता वाली क्षयोपशमजनित म बुद्धि के धारक। कोष्टबुद्धिधारी-जैसे कोठे में भरा धान्य क्षीण नहीं होता, वैसे ही प्राप्त ज्ञान चिरकाल तक उतना ही बना क रहे-कम न हो, ऐसी शक्ति से सम्पन्न। __पदानुसारीबुद्धिधारक-एक पद को सुनकर ही अनेक पदों को जान लेने की बुद्धि-सामर्थ्य । )55555555555555555555) ) श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर (267) Sh.2, First Chapter: Non-Violence Samvar जम 8955555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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