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वाले मुनि ।
तज्जातसंसृष्टकल्पिक - जो पदार्थ ग्रहण करना है उसी से भरे हुए हाथ या पात्रादि से भिक्षा लेने के कल्प फ
वाले मुनि |
शुद्धैषणिक - निर्दोष आहार की गवेषणा करने वाले मुनि ।
संख्यादत्तिक- दत्तियों की संख्या निश्चित्त करके आहार लेने वाले ।
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दृष्टाभिक दृष्ट स्थान से दी जाने वाली या दृष्ट पदार्थ की भिक्षा ही ग्रहण करने वाले श्रमण । अदृष्टलाभिक- अदृष्टपूर्व- पहले नहीं देखे दाता के हाथ से भिक्षा लेने वाले ।
उपनिधिक-समीप में ही भिक्षार्थ जाने के अथवा समीप में रहे हुए पदार्थ को ही ग्रहण करने के अभिग्रह 5
पृष्टलाभिक- 'महाराज ! यह वस्तु लेंगे ?' इस प्रकार प्रश्न पूछने पर प्राप्त भिक्षा लेने वाले । आचाम्लिक - आयंबिल तप करने वाले ।
पुरिमार्धिक - दो पौरुषी दिन चढ़े बाद आहार लेने वाले ।
एकासनिक- नित्य एकाशन तप करने वाले ।
निर्विकृतिक - घी, दूध, दही आदि के त्यागी या इन रसों (विगयों) से रहति भिक्षा लेने वाले । भिन्नपिण्डपातिक - पात्र में बिखरे पड़े आहार को लेने वाले ।
परिमितपिण्डपातिक - घरों एवं आहार के परिमाण का निश्चय करके परिमित आहार ग्रहण करने वाले । अरसाहारी - रसहीन - हींग आदि वघार से रहित आहार लेने वाले ।
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विरसाहारी - पुराना होने से नीरस हुए धान्य का आहार लेने वाले ।
उपशान्तजीवी - भिक्षा मिलने और न मिलने की स्थिति में उद्विग्न न होकर शान्तभाव में स्थिर रहने वाले । प्रतिमास्थायिक - एकमासिकी आदि भिक्षुप्रतिमाओं को धारण करने वाले ।
स्थानोत्कुटुक - उकडू आसन से एक जगह बैठने वाले।
वीरासनिक- वीरासन से बैठने वाले । (पैर धरती पर टेककर कुर्सी पर बैठे हुए मनुष्य के नीचे से कुर्सी हटा लेने पर उसका जो आसन रहता है, वह वीरासन है ।)
नैषयिक दृढ़ आसन से बैठने वाले ।
दण्डायतिक-डंडे के समान लम्बे लेटकर रहने वाले ।
लगण्डशायिक - सिर और पाँवों की एड़ियों को धरती पर टिकाकर और शेष शरीर को अधर रखकर शयन करने वाले
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एकपार्श्विक - एक ही पसवाड़े से सोने वाले ।
आतापक- गर्मी में आतापना लेने वाले तथा सर्दी में शीत सहने वाले ।
अप्रावृत्तिक- प्रावरण- वस्त्ररहित होकर शीत, उष्ण, दंश-मशक आदि के परीषह सहन करने वाले ।
श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर
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Sh. 2, First Chapter: Non-Violence Samvar
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