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(२५) भद्रा-स्व का और पर का भद्र-कल्याण करने वाली है। (२६) विशुद्धि-आत्मा को शुद्ध बनाने वाली है। (२७) लब्धि-केवलज्ञान आदि समस्त लब्धियों का कारण है। (२८) विशिष्ट दृष्टि-विचार और आचार में अनेकान्त-प्रधान सम्यक् दृष्टि प्रदान करने वाली है।
(२९) कल्याण- शारीरिक एवं मानसिक आरोग्य प्रदान करने वाली है । आत्मा का कल्याण करने वाली है।
(३०) मंगल-समस्त पापों का विनाश कर, सुख उत्पन्न करने वाली है। (३१) प्रमोद-स्वयं को तथा दूसरों को हर्ष उत्पन्न करने वाली है। (३२) विभूति-समस्त आध्यात्मिक ऐश्वर्य का कारण है। (३३) रक्षा-प्राणियों को दुःख से बचाने वाली है, आत्मा की पापों से रक्षा करने वाली है। (३४) सिद्धावास-मुक्तिधाम में पहुँचाने वाली, मोक्ष का हेतु है। (३५) अनास्रव-आते हुए कर्मों का निरोध करने वाली है। (३६) केवलि-स्थानम्-केवलियों के लिए स्थानरूप है। केवली सदा अहिंसाभाव में स्थित रहते हैं। (३७) शिव-सुख स्वरूप, समस्त उपद्रवों का शमन करने वाली है। (३८) समिति-सम्यक् प्रवृत्ति है। (३९) शील-सदाचार स्वरूप वाली है। (४०) संयम-मन और इन्द्रियों की प्रवृत्ति का निरोध तथा जीवरक्षा रूप है। (४१) शीलपरिग्रह-सदाचार अथवा ब्रह्मचर्य का घर है। (४२) संवर-आस्रव का निरोध करने वाली है। (४३) गुप्ति-मन, वचन, काय की असत् प्रवृत्तियों को रोकने वाली है। (४४) व्यवसाय-विशिष्ट-उत्कृष्ट निश्चय या उत्कृष्ट संकल्परूप है। (४५) उच्छय-प्रशस्त भावों की उन्नति-वृद्धि करने वाली है। (४६) यज्ञ-अभयदान, सेवा, करुणा, परोपकार रूप यज्ञ है। अथवा आत्मदेव की भाव पूजा है। (४७) आयतन-समस्त सद्गुणों का स्थान या आश्रय है।
(४८) जयना-अहिंसा यतना रूप है। प्राणियों की रक्षा के प्रति जागरूक रहना। यह अभय दान दात्री है।
(४९) अप्रमाद-प्रमाद लापरवाही आदि का त्याग सतत जागरूकता है।
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श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर
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Sh.2, First Chapter:Non-Violence Samvar
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