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555555555555555555555555555555555555 卐 (४) शक्ति-आध्यात्मिक शक्ति का कारण है। कहीं-कहीं 'सत्ती' के स्थान पर 'संती' पद मिलता है, म
जिसका अर्थ है-शान्ति। अहिंसा में समस्त विग्रह विरोध, समाप्त हो जाने से वह परम 'शान्ति' भी । ॐ कहलाती है।
(५) कीर्ति-कीर्ति या प्रशंसा का कारण है। (६) कान्ति-अहिंसा के आराधक में शारीरिक एवं आत्मिक कान्ति-तेजस्विता उत्पन्न हो जाती है। (७) रति-प्राणीमात्र के प्रति प्रीति, मैत्री, अनुरक्ति-आत्मीयता को उत्पन्न करने वाली है। (८) विरति-पापों व दुष्कृत्यों से विरक्ति देने वाली है।
(९) श्रुताङ्ग-श्रुतज्ञान देने के कारण अर्थात् सत्-शास्त्रों के अध्ययन-मनन से अहिंसा उत्पन्न होती है, इस कारण इसे 'श्रुतांग' कहा गया है।
(१०) तृप्ति-सन्तोषवृत्ति या तृप्ति भी अहिंसा का एक रूप है। 4 (११) दया-कष्ट पाते हुए, मरते हुए या दुःखित प्राणियों की करुणाप्रेरित भाव से रक्षा करना, यथाशक्ति दूसरे के दुःख का निवारण करना अहिंसा का रूप है।
(१२) विमुक्ति-कर्म बन्धनों से पूरी तरह छुड़ाने वाली है। (१३) क्षान्ति-क्षमा अथवा सहिष्णुता भी अहिंसा का ही अंग है।
(१४) सम्यक्त्वाराधना-संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्थारूप सम्यक्त्व की आराधना-सेवना का कारण है।
(१५) महती-समस्त व्रतों में या समस्त जगत् में अहिंसा महान्-प्रधान है। (१६) बोधि-रत्नत्रयरूप बोधि का कारण है। (१७) बुद्धि-बुद्धि को सार्थकता एवं सफलता प्रदान करने वाली है।
(१८) धृति-चित्त की धीरता-दृढ़ता है। __ (१९) समृद्धि-मानसिक और आत्मिक-सब प्रकार की सम्पन्नता से युक्त है। जीवन को आनन्दित करने वाली है।
(२०) ऋद्धि-आत्मिक एवं भौतिक ऋद्धि-प्राप्ति का कारण है। (२१) वृद्धि-पुण्य-धर्म की एवं दया आदि सद्गुणों की वृद्धि का कारण है। (२२) स्थिति-मुक्ति में प्रतिष्ठित करने वाली है। (२३) पुष्टि-पाप का क्षय करके पुण्य वृद्धि के द्वारा जीवन को पुष्ट बनाने वाली है। (२४) नन्दा-स्व और पर को आनन्द-प्रमोद प्रदान करने वाली है।
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| श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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