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प्रथम अध्ययन : अहिंसा FIRST CHAPTER: AHIMSA
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___ शास्त्रकार ने प्रथम संवरद्वार का प्रारम्भ करने से पूर्व उसकी भूमिका में पाँचों संवरद्वारों के निरूपण का उद्देश्य, उनका स्वरूप, महत्त्व बताने के साथ उनमें अहिंसा संवर को सबसे प्रमुख मानने का कारण बताया है। अब यहाँ शास्त्रकार ने अपनी चिर परिचित शैली के अनुसार सर्वप्रथम अहिंसा भगवती के गुण निष्पन्न साठ नाम बतायें हैं।
Before commencing the first Samvardvar, the author has detailed the purpose, definition and importance of all the five doors. He has also mentioned in the introduction the reason for Ahimsa being the most important of these doors. Now the author, in his known style, first of all gives sixty synonyms of Ahimsa derived from the attributes. अहिंसा भगवती के साठ नाम SIXTY SYNONYMS OF NON-VIOLENCE (AHIMSA)
१०७. तत्थ पढमं अहिंसा जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स भवइ दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा। १ णिव्वाणं २ णिबुई ३ समाही ४ सत्ती ५ कित्ती ६ कंती ७ रई य ८ विरई य ९ सुयंग १० तित्ती म ११ दया १२ विमुत्ती १३ खंती १४ सम्मत्ताराहणा १५ महंती १६ बोही १७ बुद्धी १८ धिई १९ ॥ + समिद्धी २० रिद्धी २१ विद्धी २२ ठिई २३ पुट्ठी २४ णंदा २५ भद्दा २६ विसुद्धी २७ लद्धी २८ के विसिट्ठदिट्ठी २९ कल्लाणं ३० मंगलं ३१ पमोओ ३२ विभूई ३३ रक्खा ३४ सिद्धावासो ३५ अणासवो
३६ केवलीण ठाणं ३७ सिवं ३८ समिई ३९ सीलं ४० संजमो त्ति य ४१ सीलपरिघरो ४२ संवरो य. ॐ ४३ गुत्ती ४४ ववसाओ ४५ उस्सओ ४६ जण्णो ४७ आययणं ४८ जयणं ४९ अप्पमाओ ५०
अस्साओ ५१ वीसाओ ५२ अभओ ५३ सबस्स वि अमाघाओ ५४ चोक्ख ५५ पवित्ता ५६ सूई ५७ । ॐ पूया ५८ विमल ५९ पभासा य ६० णिम्मलयर त्ति एवमाईणि णिययगुणणिम्मियाहं पज्जवणामाणि होति + अहिंसाए भगवईए।
१०७. उन (पूर्वोक्त) पाँच संवरद्वारों में प्रथम संवरद्वार 'अहिंसा' है। यह अहिंसा देवों, मनुष्यों
और असुरों सहित समग्र लोक के लिए-द्वीप के समान आश्रय देने वाली है, शरण देने वाली है अथवा ॐ दीपक के समान ज्ञान का प्रकाश देने वाली है। त्राण है-संसार के विविध प्रकार के दुःखों से पीड़ित + जनों के लिए यही एकमात्र गति है, प्राप्त करने योग्य है तथा समस्त सद्गुण एवं सुख इसी में प्रतिष्ठित सन्निहित हैं। अहिंसा के गुण निष्पन्न नाम इस प्रकार हैं -
(१) निर्वाण-मुक्ति का कारण है। (२) निवृत्ति-आत्मिक एवं मानसिक स्वस्थतारूप है। (३) समाधि-समता का कारण है।
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श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर
(253)
Sh.2, First Chapter: Non-Violence Samvar
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