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पंचम अध्ययन : परिग्रह FIFTH CHAPTER : ATTACHMENT (PARIGRAHA)||
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शास्त्रकार ने इस पंचम् अध्ययन में परिग्रह आश्रव के रूप में पांचवें अधर्मद्वार की प्ररूपणा की है। पिछले अध्ययनों की ही शैली में सर्वप्रथम परिग्रह का स्वरूप बताया है। उसके पश्चात् इसके पर्यायवाची नाम, इसे सेवन करने वाले, अन्त में इसके अवश्यभावी दुर्गुणों का वर्णन किया है। परिग्रह का स्वरूप NATURE OF PARIGRAHA
९३. [१] जंबू ! इत्तो परिग्गहो पंचमो उ णियमा। ___णाणामणि-कणग-रयण-महरिहपरिमलसपुत्तदार-परिजण-दासी-दास-भयग-पेस-हय-गयगो-महिस-उट्ट-खर-अय-गवेलग-सीया-सगड-रह-जाण-जुग्ग-संदण-सयणासण-वाहणकुविय-धणधण्ण-पाण-भोयणाच्छायण-गंध-मल्ल-भायण-भवणविहिं चेव बहु-विहीयं । ___ भरहं णग-णगर-णिगम-जणवय-पुरवर-दोणमुह-खेड-कब्बड-मडंब-संबाह-पट्टण-सहस्सपरिमंडियं। थिमियमेइणीयं एगच्छत्तं ससागरं भुंजिऊण वसुहं। ___ ९३. [१] गणधर श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं-हे जम्बू ! चौथे अब्रह्म नामक आस्रवद्वार का निरूपण करने के पश्चात् यह पाँचवाँ परिग्रह (आस्रव) बताता हूँ। (इस परिग्रह का स्वरूप इस प्रकार है-) ___ अनेक जाति के मणियों, सोना, कर्केतन आदि रत्नों, कस्तूरी आदि बहुमूल्य सुगंधमय द्रव्यों, पुत्र
और पत्नी समेत परिवार, दासी-दास, काम करने वाले नौकर-चाकर, कर्मचारी, घोड़े, हाथी, गाय, भैंस, ऊँट, गधों, बकरों, बकरियों, भेड़ों, पालकियों, शकट-गाड़ी-छकड़ा, रथ, यानों युग्य-दो हाथ लम्बी विशेष प्रकार की सवारी गाड़ियों, क्रीड़ारथ, शयन, आसन, वाहन तथा घर के उपयोग में आने वाले विविध प्रकार का सामान, धन, धान्य-गेहूँ, चावल आदि, पेय पदार्थ, भोजन, पहनने-ओढ़ने के वस्त्र, गन्ध-कपूर आदि, माला-फूलों की माला, बर्तन-भांडे तथा भवन आदि अनेक प्रकार की सामग्री को (भोग लेने पर भी)। ___ और हजारों पर्वतों, नगरों, निगमों, जनपदों, महानगरों, द्रोणमुखों, खेट (चारों ओर धूल के कोट वाली बस्तियाँ), कर्बटों-कस्बों, मडंबों, संबाहों तथा पत्तनों आदि ऐसे बड़े नगरों से सुशोभित भरत क्षेत्र-भारतवर्ष को भोगकर भी अर्थात् सम्पूर्ण भारतवर्ष का आधिपत्य भोग लेने पर भी, तथा जहाँ के लोग निर्भय तथा निश्चिन्ततापूर्वक निवास करते हैं ऐसी सागरपर्यन्त पृथ्वी को एकच्छत्र-अखण्ड राज्य भोगने पर भी (परिग्रह से तप्ति नहीं होती)। In this fifth chapter the author describes the fifth door of impiety as
inflow (asrava) through covetousness (Parigraha). Following the style of i preceding chapters parigraha has been defined first of all. After that are
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श्रु.१, पंचम अध्ययन : परिग्रह आश्रय
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Sh.1, Fifth Chapter: Attachment Aasrava
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