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卐 5 उपसंहार CONCLUSION
९२. एसो सो अबंभस्स फलविवागो इहलोइओ परलोइओ य अप्पसुहो बहुदुक्खो महभओ बहुरयपगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चइ, ण य अवेयइत्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति, एवमाहं णायकुलणंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरणामधिज्जो कहेसी य अबंभस्स फलविवागं एयं ।
तं अभवि चत्थं सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स पत्थणिज्जं एवं चिरपरिचियमणुगयं दुरंतं । त्ति बेमि । || चउत्थं अहम्मदारं समत्तं ॥
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९२. इस प्रकार पूर्व पाठ में फलविपाक बताया है। यह सुख से
अब्रह्म रूप अधर्म का यह इहलोक सम्बन्धी और परलोक सम्बन्धी फ्र रहित अथवा लेशमात्र सुख वाला किन्तु बहुत दुःखों वाला है। यह 卐
फलविपाक अत्यन्त भयंकर है और अत्यधिक पाप-रज से संयुक्त है। बड़ा ही दारुण और कठोर है। असाता का जनक है - हजारों वर्षों में अर्थात् बहुत दीर्घकाल के पश्चात् इससे छुटकारा मिलता है, किन्तु इसे भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता, ऐसा ज्ञातकुल के नन्दन वीरवर - (महावीर ) महात्मा, जिनेन्द्रतीर्थंकर ने कहा है और अब्रह्म का फलविपाक प्रतिपादित किया है।
अथवा बड़ी कठिनाई से इसका अन्त आता है।
यह चौथा आस्रव अब्रह्म है। सभी देवता, मनुष्य और असुर सहित समस्त लोक के प्राणी इनकी वांछा करते हैं। प्राणियों को यह चिरकाल से परिचित है। पीछे लगा हुआ और दुरन्त है - दुःखप्रद है 5
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This is the fourth asrava (inflow of Karma). All the living beings including celestial beings, human beings and demon gods have a desire for it. They are well acquainted with it since a very long period. It is attached to them. It is very harsh in the end. It causes great distress. It can be finished with a great difficulty.
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
॥ चतुर्थ अब्रह्मचर्य अधर्म द्वार समाप्त ॥
92. Thus in the preceding aphorism the consequence of the activities besmeared with non-chastity (abrahm) in this life and in succeeding 5 lives has been narrated. It is either devoid of happiness or provides insignificant happiness. But it is full of great distress. This result is extremely dreadful and it is extremely polluted with the karmic matter. It is very harsh and troublesome. It produces pain. One is freed from it after a very long period of thousands of years. One cannot avoid it without experiencing. Such is the version of Tirthankar Mahavir of 卐 Jnatri clan. This is how he has explained the result of non-chastity.
• END OF THE FOURTH CHAPTER •
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