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555555555555)))))) ) ) ) ) ) ) influence, who has destroyed the very root of attachment and who is without any feeling of lust for sensual desires
So in this aphorism, it is called durant' and not 'anant'. In other words it is not mentioned that it cannot be ended. In order to completely subdue the feeling of non-celibacy, one should be strong in austerities and self-discipline. Lust can be overpowered through meditation, state of equanimity and practice of complete non-attachment. अब्रह्म के गुण-निष्पन्न नाम SYNONYMS OF ABRAHM BASED ON ITS QUALITIES
८१. तस्स य णामाणि गोण्णाणि इमाणि होति तीसं, तं जहा-१. अबंभं, २. मेहुणं, ३. चरंतं, ४. संसग्गि, ५. सेवणाहिगारो, ६. संकप्पो, ७. बाहणा पयाणं, ८. दप्पो, ९. मोहो, १०. मणसंखोभो, ११. अणिग्गहो, १२. बुग्गहो, १३. विधाओ, १४. विभंगो, १५. विन्भमो, १६. अहम्मो, १७. असीलया, १८ गामधम्मतित्ती, १९. रई, २०. रागचिंता, २१. कामभोगमारो, २२. वेरं, २३. रहस्सं, २४. गुज्झं, २५. बहुमाणो, २६. बंभचेरविग्यो, २७. वावत्ती, २८. विराहणा, २९. पसंगो, ३०. कामगुणोत्ति वि य तस्स एयाणि एवमाईणि णामधेज्जाणि होति तीसं।
८१. पूर्व प्ररूपित अब्रह्मचर्य के सार्थक तीस नाम हैं। वे इस प्रकार हैं१. अबंभं-आत्म-भाव से रहित अकुशल अनुष्ठान। २. मेहुणं-मैथुन अर्थात् नर-नारी के संयोग से होने वाला कृत्य। ३. चरंतं-समूचे संसार में व्याप्त। ४. संसग्गि-स्त्री और पुरुष (आदि) के संसर्ग या सम्पर्क से उत्पन्न होने वाला। ५. सेवणाहिगारो-असत्य, चोरी आदि अन्यान्य पापकर्मों का प्रेरक। ६. संकप्पो-मानसिक संकल्प से उत्पन्न होने वाला। ७. बाहणा पयाणं-संयम-स्थानों को बाधित, पीड़ित करने वाला। ८. दप्पो-शरीर एवं इन्द्रियों के दर्प-अधिक पुष्ट होने से उत्पन्न होने वाला। ९. मोहो-मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाला। हिताहित के विवेक को नष्ट करने वाला। १०. मणसंखोभो-मन में क्षोभ-उद्वेग-विकार उत्पन्न करने वाला या मन को चंचल बना देने वाला। ११. अणिग्गहो-विषयों में प्रवृत्त होते हुए मन व इन्द्रियों का निग्रह न करने से उत्पन्न होने वाला।
१२. बुग्गहो-लड़ाई-झगड़ा-क्लेश उत्पन्न करने वाला अथवा विपरीत देह के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने वाला।
१३. विधाओ-आत्मा के सद्गुणों का घात करने वाला। १४. विभंगो-संयम चारित्र आदि सद्गुणों को भंग-विध्वंस करने वाला। १५. विन्भमो-भ्रम अर्थात् अहितकारी विषयों में हित की भ्रान्ति उत्पन्न करने वाला। १६. अहम्मो-अधर्म-पाप का मूल कारण।
श्रु.१, चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्म आश्रव
( 179 ) Sh.1, Fourth Chapter : Non-Celibacy Aasrava
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