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________________ महारणसंखभेरिवरतूर-पउर-पडुपडहाहयणिणाय-गंभीरणंदिय पक्खुभिय-विउलघोसे हय-गय-रहजोह-तरिय-पसरिय-रउद्धततमंधकार-बहले कायर-णर-णयण-हिययवाउलकरे।। ६४. दूसरे कितने ही राजा जो युद्धभूमि में सबसे अगली पंक्ति में लड़कर विजय प्राप्त करने वाले होते हैं। वे (इस प्रकार विविध शस्त्रों से सज्जित रहते हैं) जैसे-कमर कसे हुए, कवच-बख्तर धारण किये हुए और विशेष प्रकार के चिह्नपट्ट-परिचयसूचक बिल्ले मस्तक पर बाँधे हुए, अस्त्र-शस्त्रों को धारण किये हुए, प्रतिपक्ष के प्रहार से बचने के लिए ढाल से और उत्तम कवच से शरीर को वेष्टित किये हुए, लोहे की जाली पहने हुए, कवचों पर लोहे के काँटे लगाये हुए, वक्षस्थल के साथ ऊर्ध्वमुखी बाणों की तूणीर-बाणों की थैली कण्ठ में बाँधे हुए, हाथों में पाश-शस्त्र और ढाल लिए हुए, सैन्यदल की रणोचित रचना किए हुए, कठोर धनुष को सहर्ष हाथों में पकड़े हुए, हाथों से (बाणों को) खींचकर की जाने वाली प्रचण्ड वेग से बरसती हुई मूसलधार वर्षा के गिरने से जहाँ मार्ग अवरुद्ध हो गया है, ऐसे युद्ध में अनेक धनुषों, दुधारी तलवारों, फेंकने के लिए निकाले गये त्रिशूलों, बाणों, बायें हाथों में पकड़ी हुई ढालों, म्यान से निकाली हुई चमकती तलवारों, प्रहार करते हुए भालों, तोमर नामक शस्त्रों, चक्रों, गदाओं, कुल्हाड़ियों, मूसलों, हलों, शूलों, लाठियों, भिंडमालों, शब्बलों-लोहे के वल्लमों, पट्टिस नामक शस्त्रों, पत्थरों-गिलोलों, द्रुघणों-विशेष प्रकार के भालों, मुट्ठी में आ सकने वाले एक प्रकार के शस्त्रों, मुद्गरों, प्रबल आगलों, गोफणों, द्रुहणों (कर्करों), बाणों के तूणीरों, नालदार बाणों एवं आसन नामक शस्त्रों से सज्जित तथा दुधारी तलवारों और चमचमाते शस्त्रों को आकाश में फेंकने से आकाश बिजली के समान उज्ज्वल प्रभा वाला हो जाता है। उस संग्राम में प्रकट-स्पष्ट शस्त्र-प्रहार होता है। महायुद्ध में बजाये जाने वाले शंखों, भेरियों, उत्तम वाद्यों, अत्यन्त स्पष्ट ध्वनि वाले ढोलों के बजने के गम्भीर आघोष से वीर पुरुष हर्षित होते हैं और कायर पुरुषों को घबराहट बढ़ती जाती है। वे (भय से पीड़ित होकर) काँपने लगते हैं। इस कारण युद्धभूमि में हो-हल्ला होता है। घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सेनाओं के शीघ्रतापूर्वक चलने से चारों ओर फैली-उड़ती धूल के कारण वहाँ सघन अंधकार व्याप्त रहता है। वह युद्ध कायर नरों के नेत्रों एवं हृदयों को आकुल-व्याकुल बना देता है। अगले सूत्र में पुनः उस युद्धभूमि की भयानकता का वर्णन करते हैं 64. Many other kings want to achieve conquest by fighting in the battlefield in front line. They remain equipped with various types of weapons such as waist belt, armour, the emblem indicating their entity, the badge at the forehead, weapons of war, the high quality iron shield to protect themselves from attack of the enemy. They wear iron net. Their armour has iron thorns. They have a bundle of arrows close to their chest tied to their neck. They have paash weapon and shield in their hands. They do the formation of the army as during war. They happily hold the strong bow in their hands. The battlefield was such that | श्रु.१, तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रय ( 135 ) Sh.1, Third Chapter: Stealing Aasrava %%%%%% %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% %%%%%% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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