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by great soldiers who are keen to fight first. They form many types of army formation such as of the form of lotus, bullock cart, of the form of needle, of the form of wheel or of the form of garud (eagle). Thus with an army, which can take formation of various such types, they attack other
kings. They surround the army of the enemy with their army and defeat Ni it robbing their money and property.
विवेचन : जो धन-सम्पत्ति अपने पास है तथा जो भोगोपभोग के अन्य साधन प्राप्त हैं, उनमें सन्तोष न होना 卐 और दूसरों की वस्तुओं में आसक्ति होना चौर्य कर्म का मूल कारण है। प्रस्तुत पाठ का आशय यही है कि + अदत्तादान का मूल अपनी वस्तु में सन्तुष्ट न होना और परकीय पदार्थों में गृद्धि होना है। अतएव जो अदत्तादान
के पाप से बचना चाहते हैं और अपने जीवन में सुख-शान्ति चाहते हैं, उन्हें प्राप्त सामग्री में सन्तुष्ट रहना चाहिए । ॐ और परायी वस्तु की आकांक्षाओं से दूर रहना चाहिए। प्रस्तुत प्रसंग में शास्त्रकार यह बताना चाहते हैं-धन के म
लोभ से बड़े-बड़े युद्ध, भीषण नरसंहार भी होते आये हैं। एक राज्य दूसरे राज्य पर आक्रमण कर उसकी 5 # धन-सम्पत्ति लूंटकर अपना ऐश्वर्य बढ़ाना चाहता है।
Elaboration—The basis of activity of stealing is not to feel satisfied with the money and property one possesses and to feel allured by the things the other one possesses. The purport of the present lesson is that
the basis of adattadan is not to feel contented with one's own property \i and to be attached with the things belonging to others. So those who 41
want to safeguard themselves from the sin of adattadan and want peace and happiness in their life, they should remain satisfied with what they
have. They should keep themselves away from the desire for things 41 belonging to others. In the present context the author
emphasize that great wars involving heavy bloodshed have occurred due
to greed for money. One ruler attacked the other ruler in order to y increase his wealth by robbing the wealth of the other. युद्ध के लिए विविध प्रकार की शस्त्र-सज्जा VARIOUS WEAPONS FOR THE BATTLE
६४. अवरे रणसीसलद्धलक्खा संगामंसि अइवयंति सण्णद्धबद्धपरियर-उप्पीलियॐ चिंधपट्टगहियाउह-पहरणा माढिवर-वम्मगुंडिया, आविद्धजालिया कवयकंकडइया उरसिरमुह-बद्ध
कंठतोणमाइयवरफलगर चियपहकर-सरहसखरचावकरकरंछिय-सुणिसिय-सरवरिसचडकरगमुयंतघणचंड वेगधाराणिवायमग्गे अणेगधणुमंडलग्गसंधित-उच्छलियसत्तिकणग-वामकरगहिय खेडगणिम्मल
णिक्किट्ठखग्गपहरंत-कोंत-तोमर-चक्क-गया-परसु-मूसल-लंगल-सूल-लउल-भिंडमालसब्बलॐ पट्टि स-चम्मे ? -दुघणमोट्ठि य-मोग्गर -वर फलिह-जंत-पत्थर-दुहण-तोण-कु वेणी
पीढकलिएईलीपहरण मिलिमिलिमिलंतखिप्पंत-विज्जुज्जल-विरचिय-समप्पहणभतले फुडपहरणे
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(134)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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