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विवेचन प्रस्तुत पाठ में मृषावाद के कटु फलविपाक का उपसंहार करते हुए तीन बातों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है
(१) असत्य भाषण का जो पहले और यहाँ फल निरूपित किया गया है, वह सूत्रकार ने अपनी स्वमति कल्पना से नहीं किया है किन्तु ज्ञातकुलनन्दन भगवान् महावीर, सर्वज्ञ वीतराग जिन के द्वारा प्ररूपित है। यह लिखकर शास्त्रकार ने इस समग्र कथन की प्रामाणिकता की है।
अर्थात् जिनेन्द्रों ने जो कहा है वही सत्य है और उस कथन में शंका के लिए कुछ भी स्थान नहीं है।
(२) सूत्रकार ने दूसरा तथ्य यह प्रकट किया है कि मृषावाद के फल को सहस्रों-सहस्रों वर्षों तक भोगना पड़ता है। 'सहस्र' शब्द में बहुवचन का प्रयोग करके सूत्रकार ने दीर्घकालिक फलभोग का अभिप्राय प्रकट किया है।
(३) तीसरा तथ्य यहाँ फल की अवश्यमेव उपभोग्यता कही है। असत्य भाषण का दारुण, दुःखमय फल भोगे बिना जीव को उससे छुटकारा नहीं मिलता। क्योंकि वह विपाक 'बहुरयप्पगाढो' होता है, अर्थात् अलीक भाषण से जिन कर्मों का बंध होता है, वे बहुत गाढ़े, चिकने होते हैं, अतएव विपाकोदय से भोगने ही पड़ते हैं।
Elaboration-In the present lesson three things have been specially mentioned while concluding the talk on bitter consequences of falsehood.
(1) Whatever has been mentioned earlier or here, as the result of falsehood is not based on the flight of imagination of the author. It is, however, mentioned by omniscient Bhagavan Mahavir belonging to Jnatri clan. Thus the writer has clarified that this version is absolutely true and is of one who has actually seen it.
Whatever is said by the omniscient is totally true and there is not any scope of doubt in it.
(2) The second fact that the writer has highlighted is that one has to bear the consequences of falsehood for thousands of years. By using the words 'thousand' in plural form, the writer has clarified that its consequences are suffered for a very long period.
(3) The third conclusion is that one has to bear the consequences of falsehood essentially. One can not go scot free without undergoing the dreadful, troublesome consequence of his false speech. That result is 'haturayappagadho'. It means that the bondage due to false utterances is extremely thick and tenacious. So when it fructifies, one has to bear its consequences.
उपसंहार CONCLUSION
५९. (ख) एयं तं बिईयं पि अलियवयणं लहुसग - लहु - चवल - भणियं भयंकरं दुहकरं अयसकरं वेरकरगं अरइ - रइ-राग-दोस - मणसंकिलेस - वियरणं अलिय - णियडि - साइजोगबहुलं णीयजणणिसेवियं
श्रु. १, द्वितीय अध्ययन : मृषावाद आश्रव
Sh.1, Second Chapter: Falsehood Aasrava
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