________________
बफफफफफफफफफफफफफफफफ
फफफफफफफफफ
णिस्संसं अप्पच्चयकारगं परम - साहुगरहणिज्जं परपीलाकारगं परमकण्हलेस्ससहियं दुग्गड - विणिवायवडणं
पुणभवकरं चिरपरिचियमणुगयं दुरंतं ।
॥ बिईयं अहम्मदारं समत्तं ॥
५९. (ख) यह दूसरा अधर्मद्वार - मृषावाद है। छोटे क्षुद्र और चंचल प्रकृति के लोग इसका प्रयोग
करते - अर्थात् महान् एवं गम्भीर स्वभाव वाले मृषावाद का सेवन नहीं करते। यह मृषावाद भयंकर है,
दुःखकर
है, अपयशकर है, वैर का कारण है। अरति, रति, राग-द्वेष एवं मानसिक संक्लेश को उत्पन्न करने वाला है। यह झूठ, निष्फल कपट और अविश्वास की बहुलता वाला है। नीच जन इसका सेवन करते हैं। यह नृशंस एवं घृणा योग्य है । अविश्वासकारक है - मृषावादी के कथन पर कोई विश्वास नहीं करता। परम साधुजनों द्वारा निन्दनीय है। दूसरों को पीड़ा उत्पन्न करने वाला और परम कृष्णलेश्या से संयुक्त है। अधोगति में जाने का कारण है, पुन- पुनः जन्म-मरण का कारण है, चिरकाल से परिचित है - अनादिकाल से लोग इसका सेवन कर रहे हैं, यह अनुगत है उनके साथ चिपटा है। इसका अन्त कठिनता से होता है अथवा इसका परिणाम दुःखमय ही होता है।
॥ द्वितीय अधर्मद्वार समाप्त ॥
59 [b]. Falsehood is the second entrance of adharma ( impiety). It is followed by mean people of disturbed childish behaviour. In other words those who are cultured and sober, they do not follow falsehood. Falsehood is dreadful and troublesome. It brings dishonour. It becomes
卐
the cause of enmity. It produces disinterest in self-restraint, interest in uncontrolled behaviour, feelings of attachment and hatred, and also mental disturbance. It contains crookedness and distrust in plenty. Only mean people follow it. It is inhuman and worthy of contempt. It is untrustworthy Nobody believes the version of a person who is mrishavadi (habitual in making false utterances). It is condemned by worthy people. It causes trouble to others. It is full of extremely dark thought activity. It is the cause of re-birth in lower region and of taking birth again and again in the mundane world. It has been prevalent since beginningless period. It has been closely attached to the mundane soul.
It can be destroyed with great difficulty. In other words, its result is always painful.
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
फ्र
Jain Education International
END OF THE SECOND CHAPTER
(122)
For Private & Personal Use Only
फफफफफफफफफफफफ
卐
卐
卐
卐
Shri Prashna Vyakaran Sutra 卐
卐
www.jainelibrary.org