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________________ 65955 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 55 55 5 5 5 ४९. कोई-कोई कहते हैं कि यह जगत् प्रजापति या ब्रह्मा ने बनाया है। किसी का कहना है कि यह समस्त जगत् विष्णुमय है। किसी की मान्यता है कि आत्मा अकर्त्ता है किन्तु ( उपचार से) पुण्य और पाप (के फल) का भोक्ता है। सर्व प्रकार से तथा सर्वत्र देश - काल में इन्द्रियाँ ही कारण हैं। आत्मा (एकान्त) नित्य है, निष्क्रिय है, निर्गुण है और निर्लेप है । असद्भाववादी इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं । 49. Some thinkers declare that this world has been created by Prajapati or Brahma. Some say that the entire world is Lord Vishnu itself. Some believe that soul is not the doer but by default it has to experience the fruit of good and bad Karmas. In every form and every where during every period senses are the root cause of all activity. Soul is totally (throughout) permanent, non-doer (passive), free from all traits and without the influence of anything. Such a statement is made by Asadbhavavadi. विवेचन : प्रस्तुत सूत्र में अनेक मिथ्या मान्यताओं का उल्लेख किया गया है। उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार प्रजापतिसृष्टि- मनुस्मृति में कहा है- ब्रह्मा ने अपने देह के दो टुकड़े किये। एक टुकड़े को पुरुष और दूसरे टुकड़े को स्त्री बनाया। फिर स्त्री में विराट् पुरुष का निर्माण किया। उस विराट् पुरुष ने तप करके जिसका निर्माण किया, वही मैं (मनु) हूँ, अतएव हे श्रेष्ठ द्विजो ! सृष्टि का निर्माणकर्त्ता मुझे समझो। ईश्वरसृष्टि-ईश्वरवादी एक अद्वितीय, सर्वव्यापी, नित्य, स्वतंत्र ईश्वर के द्वारा सृष्टि का निर्माण मानते हैं। ये ईश्वर को जगत का उपादानकारण नहीं, निमित्तकारण कहते हैं। ईश्वर को ही कर्मफल का प्रदाता मानते हैं। ईश्वर द्वारा प्रेरित होकर ही संसारी जीव स्वर्ग या नरक में जाता है। किन्तु सृष्टि-र - रचना की मूल कल्पना ही कल्पना मात्र है। वास्तव में यह जगत् सदा काल से है और सदा काल विद्यमान रहेगा। कई दार्शनिक इस जगत् को विष्णुमय मानते हैं - सर्वं विष्णु मयं जगत्-अर्थात् जल-स्थलपर्वत-अग्नि आदि में सर्वत्र विष्णु व्याप्त हैं। विष्णुमय जगत् की मान्यता भी किसी युक्ति और प्रमाण से सिद्ध नहीं होती । अतः कल्पना मात्र है, क्योंकि जब जगत् नहीं था तो विष्णु कहाँ रहते थे ? उन्हें जगत्-रचना की इच्छा और प्रेरणा क्यों हुई ? अगर वे घोर अन्धकार में रहते थे, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था तो बिना उपादान-सामग्री के ही उन्होंने इतने विराट् जगत् की सृष्टि किस प्रकार कर डाली ? सृष्टि रचना के विषय में अन्य अनेक प्रकार के मन्तव्य भी यहाँ बतलाए गये हैं । उन पर अन्यान्य दार्शनिक ग्रन्थों में विस्तार से चर्चाएँ की गई हैं। अतएव जिज्ञासुओं को उन ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिए। इस प्रकार ये सारी कल्पनाएँ ईश्वर के स्वरूप को दूषित करने वाली हैं। सब मृषावाद हैं। एकात्मवाद - प्रस्तुत सूत्र में वेदान्त दर्शन सम्मत एकात्मवाद की मान्यता का उल्लेख करके उसे मृषावाद बतलाया गया है। एकात्मवादियों का कथन है- एक एव हि भूतात्मा भूते - भूते व्यवस्थितः अर्थात् संसार में आत्मा तो एक ही है, किन्तु वह अनेक रूपों में प्रतीत होता है जिस प्रकार आकाश में चन्द्रमा एक होने पर भी भिन्न श्रु. १, द्वितीय अध्ययन मृषावाद आश्रव (93) Sh. 1, Second Chapter: Falsehood Aasrava நிதிமிதிததமிமிமிமிதமிழ*********தததததததததததிதிதது Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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