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________________ फ्र फ्र hhhhhh (४) माया - मृषा - माया रूप कषाय से युक्त और मृषा झूठ होने से इसे माया - मृषा कहा जाता है। (५) असत्क - असत् पदार्थ को कहने वाला । (६) कूट - कपट - अवस्तुक - दूसरों को ठगने से कूट, भाषा का विपर्यास होने से कपट, तथ्यवस्तुशून्य होने से अवस्तुक है । (७) निरर्थक - अपार्थक - प्रयोजनहीन होने के कारण निष्प्रयोजन और सत्यहीन होने से अपार्थक है। (८) विद्वेषगर्हणीय - विद्वेष और निन्दा का कारण । (९) अनृजुक - कुटिलता- - सरलता का अभाव, वक्रता से युक्त । (१०) कल्कना - मायाचारमय । (११) वंचना - दूसरों को ठगने का कारण । (१२) मिथ्यापश्चात्कृत - न्यायी पुरुष झूठा समझ कर पीछे कर देते हैं, अतः मिथ्यापश्चात्कृत है। (१३) साति - अविश्वास का कारण । (१४) उच्छन्न - अपने दोषों और दूसरे के गुणों को ढकने वाला है। इसे 'अपच्छन्न' भी कहते हैं। (१५) उत्कूल - सन्मार्ग की मर्यादा लाँघने वाला अथवा न्याय रूपी नदी के तट से गिराने वाला है। (१६) आर्त्त - पाप से पीड़ित जनों का वचन । (१७) अभ्याख्यान - दूसरों पर मिथ्या दोषारोपण करने वाला है। (१८) किल्विष - पाप या पापका जनक है। (१९) वलय - गोलमोल - टेढ़ा-मेढ़ा, चक्करदार वचन । (२०) गहन - जिसे समझना कठिन हो, जिस वचन से असलियत का पता न चले। (२१) मन्मन - स्पष्ट न होने के कारण, अस्पष्ट वचन । (२२) नूम - सचाई को ढकने वाला । (२३) निकृति - किये हुए मायाचार को छिपाने वाला वचन । (२४) अप्रत्यय - अविश्वास उत्पन्न करने वाला होने से अप्रत्यय । (२५) असमय - सम्यक् आचार से रहित अथवा शिष्ट जनों द्वारा असंमत है। (२६) असत्यसंधता - झूठी प्रतिज्ञाओं कसमों का कारण है। (२७) विपक्ष - सत्य और धर्म का विरोधी । (२८) अपधीक - निन्दित या तुच्छ क्षुद्र बुद्धि से उत्पन्न। (२९) उपधि - अशुद्ध - मायाचार से अशुद्ध । (३०) अवलोप - वस्तु के वास्तविक स्वरूप का लोप करने वाला है। श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (78) Jain Education International Shri Prashna Vyakaran Sutra For Private & Personal Use Only उफफफफ 25955 55 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 55 5 55 55 555 55555552 फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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