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एकेन्द्रिय जीवों के दुःख PAIN OF ONE SENSED LIVING BEINGS
४०.
पत्ता एगिंदियत्तणं वि य पुढवि - जल - जलण - मारुय - वणप्फइ - सुहुम - बायरं च पज्जत्तमपज्जत्तं पत्तेयसरीरणाम - साहारणं च पत्तेयसरीरजीविएसु य तत्थवि कालमसंखेज्जगं भमंति अणंतकालं च अणंतकाए फासिंदियभावसंपउत्ता दुक्खसमुदयं इमं अणिट्टं पावंति पुणो पुणो तर्हि तर्हि चैव परभव - तरुगणगहणे ।
४०. एकेन्द्रिय अवस्था को प्राप्त हुए पृथ्वीकाय, जलकाय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के दो-दो भेद हैं- सूक्ष्म और बादर, अर्थात् सूक्ष्मपृथ्वीकाय और बादरपृथ्वीकाय, सूक्ष्मजलकाय और बादरजलकाय आदि। इनके अन्य प्रकार से भी दो-दो प्रकार होते हैं, यथा-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इन भेदों के अतिरिक्त वनस्पतिकाय में दो भेद और भी हैं - प्रत्येकशरीरी और साधारणशरीरी । इन भेदों में से प्रत्येकशरीर ( एक शरीर में एक जीव) पर्याय में उत्पन्न होने वाले पाप-हिंसक जीव असंख्यात काल तक उन्हीं - उन्हीं पर्यायों में परिभ्रमण करते रहते हैं और अनन्तकाय अर्थात् साधारण - शरीरी (एक शरीर में अनन्त जीव) जीवों में अनन्त काल तक पुनः पुनः जन्म-मरण करते हुए भ्रमण करते हैं। ये सभी जीव एक स्पर्शनेन्द्रिय वाले होते हैं । इनके दुःख अतीव अनिष्ट (पीड़ाकारी) होते हैं । वनस्पतिकाय रूप एकेन्द्रिय पर्याय में कायस्थिति सबसे अधिक - अनन्तकाल की है। (टीका, पृ. २४)
40. The one-sensed living beings are earth-bodied, water-bodied, firebodied, air-bodied and plant-bodied living beings and each is of two types-namely subtle and gross. In other words these are subtle earthbody living beings and gross earth-bodied living beings, subtle waterbodied living beings and gross water-bodied living beings and so on. Again each of them is of two types-complete in capability of their category (paryaptak) and incomplete (aparyaptak ). In addition, the plant-bodied living beings have two more types--namely one living being in one body (pratyek shariri) and infinite number of living beings in one body (sadharan shariri). The sinner living beings who take birth in pratyek shariri category go on taking birth in that category for a maximum period of innumerable years. The living beings who take birth in sadharan shariri category go on taking birth again and again in that category for a total period of infinite number of years. All these beings are one-sensed living beings and have only one sense namely sense of touch. Their sufferings are extremely troublesome. The maximum period a one-sensed living being (by taking birth again and again) can spend is infinite period.
श्रु. १, प्रथम अध्ययन : हिंसा आश्रव
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Sh.1, First Chapter: Violence Aasrava
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