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जाना, मछली आदि को गल-काँटे में या जाल में फँसाकर जल से बाहर निकालना, आग पर भूनना, 卐 छुरी आदि से काटा जाना, जीवन पर्यन्त बन्धन में बंधे रहना, पिंजरे में बन्द रहना, अपने टोले से है
पृथक् किया जाना, भैंस आदि को पूँका लगाना अर्थात् ऊपर में वायु भर देना (या इंजेक्शन आदि में लगाना) और फिर उसे दुहना-जिससे दूध अधिक निकले, गले में डण्डा बाँध देना, जिससे वह भाग न 卐 सके, बाड़े में घेरकर रखना, कीचड़-भरे पानी में डुबोना, जल में घुसेड़ना, गड्ढे में गिरने से अंग-भंग
हो जाना, पहाड़ के विषम-ऊँचे-नीचे-ऊबड़-खाबड़ मार्ग में गिर पड़ना, दावानल की ज्वालाओं में ॐ जलना या जल मरना; आदि-आदि अगणित कष्टों से परिपूर्ण तिर्यंचगति में हिंसाकारी पापी जीव नरक फ़ से निकलकर उत्पन्न होते हैं।
३६. इस प्रकार वे हिंसा का पाप करने वाले पापी जीव सैकड़ों पीड़ाओं से पीड़ित होकर, 9 नरकगति से आये हुए, घोर प्रमाद, तीव्र राग और तीव्र द्वेष के कारण बहुत संचित किए और + नरकगति में भोगने से शेष रहे कर्मों को भोगने के लिए अत्यन्त कर्कश असाता को उत्पन्न करने वाले कर्मों से उत्पन्न दुःखों को पाते हैं।
35. In addition to the above mentioned sufferings of animal life they have to suffer other pains also. They suffer separation from their parents. They remain in extreme agony due to sadness. They bear pain when their nose and the like are pierced. They are troubled by weapons, through fire and poison. Their necks and the horns are bent. They are killed. Fish and the like are caught in the net and then taken out from water. They are parched on the fire. They are cut with a sharp knife. They are kept in control throughout their life. They are put in cages. They are separated from their group. Buffalo and the like are administered injection and then milked so that one may get more milk.
A stick is tied on the neck. They are dropped in muddy water. They are \ pushed forcibly in water. There limbs get disjointed when they fall in a
ditch. They are forced into an enclosure so that they may not run away. They fall on the undulating hilly path. They are burnt in deadly fire. Those who have committed sin take birth in such an animal state of existence, which is full of innumerable troubles.
36. Thus the violent human beings who had committed sinful activities suffer hundreds of tortures in hell and then suffer the fruits of remaining bad Karmas collected by them through slackness, extreme attachment and intense hatred. They undergo extreme painful condition as a result of their evil deeds.
विवेचन : पिछले सूत्र में पंचेन्द्रिय तिर्यंचों को होने वाली यातनाओं का उल्लेख किया था। प्रस्तुत सूत्र में नारकीय जीवों की तिर्यंचगति में उत्पत्ति के कारण का निर्देश किया गया है। पहला कारण है कर्मों का शेष रहना। इतने कर्म भोगने के बाद भी कर्म शेष क्यों रहते हैं। इसका दूसरा कारण बताया है- 'पमाय-राग-दोस) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(62)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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GS.
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