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[Ans.] Gautam ! They are jnani (endowed with right knowledge ) not
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5 ajnani ( ignorant or with wrong knowledge). They only have Keval - jnana 5 5 as a rule.
१०२. [ १ ] सोइंदियलद्धियाणं जहा इंदियलद्धिया ।
[प्र. २] तस्स अलद्धिया णं
पुच्छा।
[उ. ] गोयमा ! नाणी वि अण्णाणी वि । जे नाणी ते अत्थेगइया दुनाणी, अत्थेगइया एगनाणी । जे नाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी । जे एगनाणी ते केवलनाणी । जे अण्णाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तं जहा - मइ अण्णाणी य सुयअण्णाणी य ।
१०२. [ १ ] श्रोत्रेन्द्रियलब्धियुक्त जीवों का कथन इन्द्रियलब्धि वाले जीवों की तरह समझें ।
[प्र. २ ] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ?
[ उ. ] गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी । जो ज्ञानी होते हैं, उनमें से कई दो ज्ञान वाले होते हैं और कई एक ज्ञान वाले होते हैं। जो दो ज्ञान वाले होते हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं। जो एक ज्ञान वाले होते हैं, वे केवलज्ञानी होते हैं । जो अज्ञानी होते हैं, वे नियमतः दो अज्ञान वाले होते हैं। यथा-मति - अज्ञान और श्रुत- अज्ञान ।
102. [1] Living beings with Shrotrendriya-labdhi (attainment of ability of the sense organ of hearing) follow the pattern of living beings with Indriya-labdhi (ability of sense organs).
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[Q. 2] Bhante ! Are jivas without Shrotrendriya-labdhi (attainment of ability of the sense organ of hearing) jnani or ajnani?
[Ans.] Gautam ! They are jnani as well as ajnani. Of those who are jnani many are with two jnanas and many with one jnana. Those with two jnanas have Abhinibodhik jnana and Shrut-jnana. Those with one jnana have Keval-jnana. Those who are ajnani have two ajnanas as a rule—Mati-ajnana and Shrut-ajnana.
१०३ . चक्खिदिय - घाणिंदियाणं लद्धियाणं अलद्धियाण य जहेव सोइंदियस्स ।
१०३ . चक्षुरिन्द्रिय और घ्राणेन्द्रियलब्धि वाले जीवों का कथन श्रोत्रेन्द्रियलब्धिमान् जीवों के समान कहना चाहिए।
103. Living beings with Chakshurindriya-labdhi (attainment of ability of the sense organ of seeing) and Ghranendriya-labdhi (attainment of ability of the sense organ of hearing) follow the pattern of Shrotrendriya-labdhi (attainment of ability of the sense organ of
hearing).
भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3)
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