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detachment related to beings at eleventh and higher Gunasthaans). The
i only difference is that yathakhyat-chaaritra-labdhi jivas have different i alternative combinations of five jnanas (kinds of right knowledge). In the same way what has been stated about beings without samayik chaaritralabdhi (not having attained the ability of equanimous conduct) should be extended up to beings without yathakhyat-chaaritra labdhi.
९५. [प्र. १ ] चरित्ताचरित्तलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अण्णाणी ?
[उ.] गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी । अत्थेगइया दुण्णाणी, अत्थेगइया तिण्णाणी । जे दुन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी य, सुयनाणी य । जे तिन्नाणी ते आभि० सुयनाणी ओहिनाणी य।
[ २ ] तस्स अलद्धीयाण पंच नाणाइं, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए ।
९५. [ प्र. १ ] भगवन् ! चारित्राचारित्र (देशचारित्र) लब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी हैं ? [उ. ] गौतम ! वे ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें से कई दो ज्ञान वाले, कई तीन ज्ञान वाले होते हैं। जो दो ज्ञान वाले होते हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं, जो तीन ज्ञान वाले होते हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी होते हैं ।
[२] चारित्राचारित्रलब्धिरहित जीवों में पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं।
95. [Q. 1] Bhante ! Are chaaritraachaaritra-labdhi jivas (living beings having attained the ability of partial renunciation) jnani or ajnani?
[Ans.] Gautam ! They are jnani not ajnani. Some of these have two jnanas and some have three. Those having two jnanas have Abhinibodhik jnana and Shrut-jnana and those having three have Abhinibodhik jnana, Shrut-jnana and Avadhi-jnana.
[2] Jivas without chaaritraachaaritra-labdhi (living beings without having attained the ability of partial renunciation) have different alternative combinations of five jnanas and three ajnanas (kinds of wrong knowledge).
९६. [ १ ] दाणलद्धियाणं पंच नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए ।
[प्र. २ ] तस्स अलीया णं पुच्छा ।
[उ. ] गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी । नियमा एगनाणी - केवलनाणी ।
९६. [ १ ] दानलब्धिमान् जीवों में पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं।
[प्र. २ ] भगवन् ! दानलब्धिरहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ?
[उ.] गौतम ! वे ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें नियम से एक मात्र केवलज्ञान होता है।
अष्टम शतक: द्वितीय उद्देशक
Eighth Shatak: Second Lesson
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