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५०. [प्र. ] नोसुहुमानोबादरा णं भंते ! जीवा० ? [उ. ] जहा सिद्धा। ५०. [प्र. ] भगवन् ! नो-सूक्ष्म-नो-बादर जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [उ. ] गौतम ! इनका कथन सिद्धों की तरह समझना चाहिए।
50. [Q.] Bhante ! Are jivas (living beings) that are neither minute nor \i gross (nosukshma nobaadar) jnani or ajnani ?
__ [Ans.] Gautam ! They are like Siddhas. + पंचम, पर्याप्त-अपर्याप्तद्वार FIFTH STATE : PRARYAPT-APARYAPT
५१. [प्र. ] पज्जत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी० ? [उ. ] जहा सकाइया। ५१. [प्र. ] भगवन् ! पर्याप्तक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [उ. ] गौतम ! इनका कथन सकायिक जीवों के समान जानना चाहिए।
51. (Q.) Bhante ! Are paryaptak jivas (fully developed beings) jnani (endowed with right knowledge) or ajnani? + [Ans.] Gautam ! They follow the pattern of embodied beings (sakaayik).
५२. [प्र. ] पज्जत्ता णं भंते ! नेरइया किं नाणी० ?
[उ. ] तिण्णि नाणा, तिण्णि अण्णाणा नियमा। __ ५२. [ प्र. ] भगवन् ! पर्याप्तक नैरयिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ?
[उ. ] गौतम ! इनमें नियमतः तीन ज्ञान या तीन अज्ञान होते हैं। ____52. [Q.] Bhante ! Are paryaptak nairayik jivas (fully developed infernal beings).jnani or ajnani ?
[Ans.] Gautam ! They have three jnanas or three ajnanas (kinds of 4 wrong knowledge) as a rule.
५३. जहा नेरइया एवं जाव थणियकुमारा। पुढविकाइया जहा एगिदिया। एवं जाव चतुरिंदिया।
५३. पर्याप्त नैरयिक जीवों की तरह यावत् पर्याप्त स्तनितकुमार तक में ज्ञान और अज्ञान का कथन करना चाहिए। (पर्याप्त) पृथ्वीकायिक जीवों का कथन एकेन्द्रिय जीवों की तरह करना चाहिए। इसी प्रकार यावत् (पर्याप्त) चतुरिन्द्रिय (अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायकि, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय) तक समझना चाहिए।
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| भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3) |
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