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विवेचन : नैरयिकों में तीन ज्ञान, तीन अज्ञान-सम्यग्दृष्टि नैरयिकों में भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है, इसलिए 5 वे नियमतः तीन ज्ञान वाले होते हैं । किन्तु जो अज्ञानी होते हैं, उनमें कितने ही दो अज्ञान वाले होते हैं और कितने ही तीन अज्ञान वाले। जब कोई असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च नरक में उत्पन्न होता है, तब उसके अपर्याप्त अवस्था में विभंगज्ञान नहीं होता, इस अपेक्षा से नारकों में दो अज्ञान कहे गये हैं। जो मिध्यादृष्टि संज्ञी पंचेन्द्रिय नरक में उत्पन्न होता है तो उसको अपर्याप्त अवस्था में भी विभंगज्ञान होता है। अतः इस अपेक्षा से नारकों में तीन अज्ञान कहे हैं। देव और नरक गति में जाने वाले संज्ञी जीव जब एक गति से दूसरी गति में जाते हैं तो पहले ही समय में उन्हें तीसरा ज्ञान-अज्ञान ( अवधि - विभंग) हो जाता है। मगर यह असंज्ञी जीव को नहीं होता । वह वहाँ जाकर पहले पर्याप्त अवस्था को प्राप्त करते हैं । तब उन्हें तीसरा ज्ञान-अज्ञान होता है।
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तीन विकलेन्द्रिय जीवों में दो ज्ञान- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में जिस औपशमिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य ने या तिर्यञ्च ने पहले आयुष्य बाँध लिया है, वह उपशम- सम्यक्त्व का वमन करता हुआ उनमें (द्वी - त्रि- चतुरिन्द्रिय विकलेन्द्रिय जीवों में) उत्पन्न होता है। उस जीव को अपर्याप्त दशा में सास्वादन सम्यग्दर्शन रहता है, जो जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह आवलिका तक रहता है; तब तक सम्यग्दर्शन होने के कारण वह ज्ञानी रहता है, उस अपेक्षा से विकलेन्द्रियों में दो ज्ञान बतलाएँ हैं। इसके पश्चात् तो वह मिध्यात्व को प्राप्त हो जाने से अज्ञानी हो जाता है। (वृत्ति, पत्रांक ३४५)
Elaboration Three jnanas and three ajnanas of infernal beings-The infernal beings with right perception or faith (samyagdrishti) are endowed with bhavapratyayik avadhi-jnana (innate extrasensory perception). That is why as a rule they are with three jnanas (kinds of right knowledge). However, among those who are ajnani many are with two kinds of ajnana (ignorance or wrong knowledge) and many with three. When a non-sentient five-sensed animal (asanjni panchendriya tiryanch) is born in hell then he does not have vibhang-jnana (pervert knowledge) in its underdeveloped state. The statement that infernal beings are with two kinds of ajnana is in this context only. But when a sentient five-sensed being with false perception/faith (mithyadrishti फ्र sanjni panchendriya jiva) is born in hell then he has vibhang-jnana (pervert knowledge) even in its underdeveloped state. In this context the infernal beings are said to have three ajnanas (kinds of wrong 5 knowledge). फ्र
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Two jnanas in two to four sensed beings-Suppose a human being or an animal with right perception/faith acquired due to pacification of karmas has already acquired ayushya karma (life-span determining karma) but takes rebirth as two to four sensed being as a result of abandoning that right perception; in that case he has traces of that right perception in its underdeveloped state. It remains with him for a minimum of one Samaya (the ultimate fractional unit of time) and अष्टम शतक: द्वितीय उद्देशक
Eighth Shatak: Second Lesson
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