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29. (Q.) Bhante ! Are earth-bodied beings (prithvikaayik) jnani or si ajnani?
[Ans.] Gautam ! They are not jnani (endowed with knowledge) but only ajnani (ignorant or with wrong knowledge). As a rule they are with two ajnanas--mati ajnani (with wrong sensual knowledge) and shrut ajnani (with ignorance related to scriptural knowledge or wrong 4 scriptural knowledge). The same should be repeated for living beings up to plant-bodied beings (vanaspatikaayik).
३०. [प्र. ] बेइंदियाणं पुच्छा। [उ. ] गोयमा ! णाणी वि, अण्णाणी वि। जे नाणी ते नियमा दुण्णाणी, तं जहाआभिणिबोहियनाणी य सुयणाणी य। जे अण्णाणी ते नियमा दुअण्णाणी-आभिणिबोहियअण्णाणी य सुयअण्णाणी य। एवं तेइंदिय-चउरिदिया वि।
३०. [ प्र. ] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ?
[उ. ] गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः दो ज्ञान वाले हैं; यथा मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी। जो अज्ञानी हैं, वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं; यथा-5 मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी कहना चाहिए।
30. (Q.) Bhante ! Now the same question about two-sensed beings (dvindriya jiva) ?
[Ans.] Gautam ! They are jnani (endowed with knowledge) as well as ajnani (ignorant or with wrong knowledge). Those who are jnani are as a rule with two jnanas (kinds of right knowledge)-mati jnani (with sensual knowledge) and shrut jnani (with scriptural knowledge). Those 41 who are ajnani are as a rule with two ajnanas (kinds of wrong knowledge)--mati ajnani and shrut ajnani. The same should be repeated for three-sensed and four-sensed living beings (trindriya and chaturindriya jivas).
३१. [प्र. ] पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा।
[उ. ] गोयमा ! नाणी वि अण्णाणी वि। जे नाणी ते अत्थेगइया दुण्णाणी, अत्थेगइया तिन्नाणी। एवं तिण्णि नाणाणि तिण्णि अण्णाणाणि य भयणाए।
३१. [प्र. ] भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [उ. ] गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें से कितने ही दो ज्ञान वाले हैं और कई तीन ज्ञान वाले हैं। इस प्रकार (पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों के) तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं।
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अष्टम शतक : द्वितीय उद्देशक
(19)
Eighth Shatak: Second Lesson
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