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५. तए णं से उसभदत्ते माहणे इमीसे कहाए लट्टे समाणे हट्ट जाव हियए जेणेव देवाणंदा माहणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवानंदं माहणिं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं जाव सुहंसुहेणं विहरमाणे जाव बहुसालए चेइए अहापडिरूवं जाव विहरइ । तं महाफलं खलु देवाणुप्पिए ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नाम - गोयस्स वि सवणयाए किमंग पुण अभिगमण - वंदण-नमंसण- पडिपुच्छण- पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि 5 आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवापिए ! समणं भगवं महावीरं वंदामो नम॑सामो जाव पज्जुवासामो। एयं णं इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेसार आणुगामियत्ताए भविस्सइ ।
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4. During that period of time Bhagavan Mahavir arrived there and the religious assembly started. People came out to pay homage and attend the discourse.
५. श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पदार्पण की बात को सुनकर वह ऋषभदत्त ब्राह्मण अत्यन्त हर्षित और सन्तुष्ट हुआ, हृदय में उल्लसित हुआ और देवानन्दा ब्राह्मणी के पास आकर इस प्रकार बोला- हे देवानुप्रिये ! धर्म की आदि करने वाले यावत् सर्वज्ञ सर्वदर्शी श्रमण भगवान महावीर आकाश में रहे हुए चक्र ( भगवान के आगे आकाश में धर्मचक्र चलता था) से युक्त यावत् सुखपूर्वक विहार करते हुए यहाँ पधारे हैं, यावत् बहुशालक नामक चैत्य (उद्यान) में योग्य अवग्रह (स्थान आदि ) ग्रहण
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करके विचरण करते हैं । हे देवानुप्रिये ! उन तथारूप अरिहन्त भगवान के नाम - गोत्र के श्रवण से भी 5 महाफल प्राप्त होता है, तो उनके सम्मुख जाने, वन्दन - नमस्कार करने, प्रश्न पूछने और पर्युपासना करने
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आदि से होने वाले फल के विषय में तो कहना ही क्या ! (उनके) एक भी आर्य और धार्मिक सुवचन श्रवण से महान् फल होता है, तो फिर विपुल अर्थ को ग्रहण करने से महाफल हो, इसमें तो कहना ही 5 क्या है ! इसलिए हे देवानुप्रिये ! हम चलें और श्रमण भगवान महावीर को वन्दन - नमन करें यावत् उनकी पर्युपासना करें। यह कार्य हमारे लिए इस भव में तथा परभव में हित के लिए, सुख के लिए,
क्षमता (-संगतता) के लिए, निःश्रेयस के लिए और आनुगामिकता ( - शुभ अनुबन्ध ) के लिए होगा।
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5. On hearing about the arrival of Bhagavan Mahavir, Rishabh-datt was very happy and so on up to... filled with joy. He came to Brahmini Devananda and said "O Beloved of gods! The propagator of the religious order ... and so on up to... all-knowing and all-seeing Shraman Bhagavan Mahavir endowed with the divine disc in the sky (Tirthankar is preceded by the airborne divine disc of religion) and so on up to... moving with comfort has arrived here and so on up to... has taken his lodge according to the ascetic code and settled down in Bahushalak Chaitya. O Beloved of gods! What to say of being able to go near him, pay homage to him, bow to him, ask questions to him, worship him, and y avail of his company when mere hearing of the name and lineage of that y भगवती सूत्र (३)
Bhagavati Sutra (3)
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