________________
9555555555555555555555555555555555;
The difference is that only one meaning (positive) has been given there, instead of that the opposite (negative or wrong) should be taken... and so on up to... no-indriya dhaarana (non-sensual absorption) and that is dhaarana. This is all about Mati-ajnana (wrong sensory knowledge).
२४. [प्र. ] से किं तं सुयअण्णाणे ? [ उ. ] सुयअण्णाणे जं इमं अण्णाणिएहिं मिच्छद्दिट्ठिएहिं जहा नंदीए जाव चत्तारि वेदा संगोवंगा। से त्तं सुयअनाणे।
२४. [प्र. ] भगवन् ! श्रुत-अज्ञान किसे कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! जिस प्रकार नन्दीसूत्र (पृष्ठ ३५३) में कहा है-'जो अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा प्ररूपित है'; इत्यादि यावत्-सांगोपांग चार वेद तक श्रुत-अज्ञान है। यह श्रुत-अज्ञान का वर्णन है।
24. [Q.] Bhante ! What is this Shrut-ajnana (absence of scriptural knowledge or wrong scriptural knowledge)? ___ [Ans.] Gautam ! It is as mentioned in Nandi Sutra (p. 353). From 'that which has been propagated by ignorant heretics'... and so on up to... four Vedas is wrong scriptural knowledge. This is all about Shrut-ajnana (absence of scriptural knowledge or wrong scriptural knowledge).
२५. [प्र. ] से किं तं विभंगनाणे ?
[उ. ] विभंगनाणे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा-गामसंटिए, नगरसंठिए जाव संनिवेससंठिए, दीवसंटिए, समुद्दसंटिए, वाससंठिए, वासहरसंठिए, पव्वयसंठिए, रुक्खसंठिए, थूभसंठिए, हयसंठिए, गयसंठिए, नरसंटिए, किन्नरसंठिए, किंपुरिससंठिए, महोरगसंठिए, गंधव्वसंटिए, उसभसंठिए, पसु-पसय-विहग-वानरणाणासंठाणसंठिते पण्णत्ते।
२५. [प्र. ] भगवन् ! वह विभंगज्ञान कितने प्रकार का है।
[उ. ] गौतम ! विभंगज्ञान अनेक प्रकार का है। यथा-ग्रामसंस्थित (ग्राम आदि का अवलम्बन होने से ग्राम के आकार का हो जाता है), नगरसेस्थित (नगराकार) यावत् सन्निवेशसंस्थित, द्वीपसंस्थित, समुद्रसंस्थित, वर्षसंस्थित (भरतादि क्षेत्र के आकार), वर्षधरसंस्थित (क्षेत्र की सीमा करने वाले पर्वतों के आकार का), सामान्य पर्वतसंस्थित, वृक्षसंस्थित, स्तूपसंस्थित, हयसंस्थित (अश्वाकार), गजसंस्थित, नरसंस्थित, किन्नरसंस्थित, किम्पुरुषसंस्थित, महोरगसंस्थित, गन्धर्वसंस्थित, वृषभसंस्थित (बैल के आकार का), पशु, पशय (अर्थात् दो खुर वाले जंगली चौपाये जानवर), विहग (पक्षी), और वानर के आकार वाला है। इस प्रकार विभंगज्ञान नाना संस्थानसंस्थित (आकारों से युक्त) कहा गया है। (पाँच ज्ञान, तीन अज्ञान का विस्तृत वर्णन सचित्र नन्दीसूत्र, पृष्ठ ७९ पर देखें।)
25. (Q.) Bhante ! Of how many types is Vibhang-jnana (pervert knowledge)?
अष्टम शतक : द्वितीय उद्देशक
(15)
Eighth Shatak : Second Lesson
5555555555555555555555555555
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org