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चित्र-परिचय 9
साधु-संतों के परस्पर व्यवहार पाँच प्रकार के होते हैं
पंचविध व्यवहार
1.
आगम व्यवहार- केवलज्ञानी, मनः पर्यायज्ञानी, विशिष्ट अवधिज्ञानी और चौदह पूर्व ज्ञानी, दस पूर्व ज्ञानी आगम विहारी कहलाते हैं। इनकी आज्ञानुसार चलना आगम व्यवहार है।
Illustration No. 9
2. श्रुत व्यवहार 10 पूर्व से कम परन्तु आचारकल्प आदि के ज्ञानी श्रुत ज्ञानी कहलाते हैं। ऐसे श्रुत ज्ञानी गुरु की आज्ञा अनुसार चलना श्रुत व्यवहार है।
3. आज्ञा व्यवहार- दो गीतार्थ साधु एक-दूसरे से दूर देश में विचरते हैं, किसी कारणवश वे आपस में मिलने में असमर्थ हैं तो एक साधु दूसरे साधु को पत्र लिखकर अपने शिष्य के साथ उनके पास भेजे और अपने अतिचार या दोष की आलोचना करे तथा प्रायश्चित्त के सम्बन्ध में परामर्श माँगे तब दूसरे साधु द्वारा उसी शिष्य के साथ उसका उत्तर प्रेषित किया जाए और पहला साधु उसकी आज्ञानुसार चले, यह आज्ञा व्यवहार है।
4.
धारणा व्यवहार-मंद बुद्धि शिष्य द्वारा गीतार्थं गुरु के समक्ष अपने अतिचार या दोष की आलोचना करने पर गीतार्थ साधु द्वारा श्रुत परम्परा से जो प्रायश्चित्त चले आ रहे हैं, वह प्रायश्चित्त देना धारणा व्यवहार है।
5. जीत व्यवहार किसी समय किसी अपराध के लिए आचार्यों ने एक प्रकार का प्रायश्चित्त निश्चित किया। दूसरे समय में देश, काल, बल, संहनन आदि देखकर प्रायश्चित्त लेने वाले की क्षमता के अनुसार वैसे ही अपराध के लिए फ्र दूसरी प्रकार का प्रायश्चित्त निश्चित करना जीत व्यवहार कहलाता है अथवा किसी आचार्य के गच्छ में आगमों के अतिरिक्त प्रायश्चित्त प्रवर्तित हुआ हो और वह अनेक गीतार्थ साधुओं द्वारा अनुवर्तित हुआ हो, ऐसी प्रायश्चित्त-विधि का व्यवहार जीत व्यवहार कहलाता है।
- शतक 8, उ. 8 सूत्र 8-9
FIVE TYPES OF ASCETIC BEHAVIOUR
Ascetic-behaviour (vyavahaar) is of five kinds
(1)Agam-vyavahaar-Those endowed with Keval-jnana, Manah-paryav-jnana, higher Avelli jnana, or knowledge fourteen, or ten Purvas are called Agam-vihari. Behaviour based on their guidance is called Agam vyavahaar
(2) Shrut-vyavahaar-The knowledge of remaining scriptures including Acharanga are classified as Shrut. To follow the order of a guru endowed with this knowledge of Shrut is called Shrutvyavahaar
(3) Ajna-vyavahaar-Suppose two accomplished ascetics are living far apart in two different states. One of them becomes weak and unable to move around. He commits some transgression and sends his inquiry about procedure of atonement to the other with a junior using code language. The other accomplished ascetic sends back his advice in the same code language. Behaviour based on such directive command is called Ajna-vyavahaar.
(4) Dhaarana-vyavahaar-To employ a methodology of atonement based on one's own understanding (dhaarana) of the directive commands given by some accomplished ascetic or acharya in the past on similar faults. Behaviour based on such interpretation of traditional commands is called Dhaarana-vyavahaar.
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(5) Jeet-vyavahaar-The atonement prescribed on the basis of prevailing parameters of matter, space, time, state as well as the individual and the decline of physical constitution and capacity is called Jeet-vyavahaar. The sin-free code of conduct that does not defy Agams and is formulated and followed by many accomplished ascetics is also called Jeet-vyavahaar
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Shatak-8, lesson-8, Sutrar-8-9
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