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२३. तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी-नो खलु अज्जो ! अम्हं गम्ममाणे अगए, वीइक्कमिज्जमाणे अवीतिक्कंते रायगिहं नगरं जाव असंपत्ते, अम्हं णं अज्जो ! गम्ममाणे गए, वीतिक्कमिज्जमाणे वीतिक्कंते रायगिहं नगरं संपाविउकामे संपत्ते, तुभं णं अप्पणा चेव गम्ममाणे अगए 5 वीतिक्कमिज्जमाणे अवीतिक्कंते रायगिहं नगरं जाव असंपत्ते।
२३. [ प्रतिवाद ] तत्पश्चात् उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीर्थिकों से इस प्रकार कहा-आर्यो ! हमारे मत में जाता हुआ (गच्छन्) अगत (नहीं गया) नहीं कहलाता, व्यतिक्रम्यमाण (उल्लंघन किया + जाता हुआ) अव्यतिक्रान्त (उल्लंघन नहीं किया) नहीं कहलाता। इसी प्रकार राजगृह नगर को प्राप्त 5 करने की इच्छा वाला व्यक्ति असम्प्राप्त नहीं कहलाता। हमारे मत में तो, आर्यो ! ‘गच्छन्' 'गत'; 'व्यतिक्रम्यमाण' 'व्यतिक्रान्त'; और राजगृह नगर को प्राप्त करने की इच्छा वाला व्यक्ति सम्प्राप्त ॥ कहलाता है। हे आर्यो ! तुम्हारे ही मत में 'गच्छन्' 'अगत', 'व्यतिक्रम्यमाण' 'अव्यतिक्रान्त' और राजगृह नगर को प्राप्त करने की इच्छा वाला असम्प्राप्त कहलाता है।
23. At this the senior ascetics said to those heretics--According to us what is ‘in the process of going' is not termed as 'has not gone', what is 'being crossed' is not termed as 'has not crossed' and 'one who is desirous of reaching Rajagriha' is not termed as 'has not reached Rajagriha'. According to us, Noble ones! What is in the process of going is termed as 'has gone', what is being crossed is termed as 'has crossed' and one who is desirous of reaching Rajagriha is termed as 'has reached Rajagriha'. Noble ones ! In fact it is according to you that what is in the process of going is termed as 'has not gone', what is beings crossed is termed as 'has not crossed' and one who is desirous of reaching Rajagriha is termed as ‘has not reached Rajagriha'.
२४. तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं पडिहणेति, पडिहणित्ता गइप्पवायं नाममज्झयणं पन्नवइंसु।
२४. तदनन्तर उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीर्थिकों को प्रतिहत (निरुत्तर) किया और निरुत्तर करके उन्होंने गतिप्रपात नामक अध्ययन प्ररूपित किया।
24. This way those senior ascetics silenced those heretics and ga them a complete discourse on the flow of movement (Gati Prapaat). ___ विवेचन : अन्यतीर्थिकों की भ्रान्ति-पूर्व चर्चा में निरुत्तर अन्यतीर्थिकों ने पुनः भ्रान्तिवश स्थविरों पर आक्षेप : किया कि आप लोग ही असंयत यावत् एकान्तबाल हैं, क्योंकि आप गमनागमन करते समय पृथ्वी की विविध रूप से हिंसा करते हैं, किन्तु सुलझे हुए विचारों के निर्ग्रन्थ स्थविरों ने धैर्यपूर्वक उनकी इस भ्रान्ति का निराकरण किया कि हम लोग काय, योग और ऋत के लिए बहुत ही यतनापूर्वक गमनागमन करते हैं, किसी भी जीव की किसी भी रूप में हिंसा नहीं करते।
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अष्टम शतक : सप्तम उद्देशक
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Eighth Shatak : Seventh Lesson
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