________________
1555555555555555555555555555555555558
them, torment them, cause them extreme agony and even kill them. This way bearing down on earth-bodied beings (prithvikaaya jivas) ... and so on up to ... killing them, you are devoid of restraint (asamyat) ... and so on up to ... through three means (karan) and three methods (yoga)... and so on up to... complete ignorant (ekaant baal).
१९. तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी-नो खलु अज्जो ! अम्हे रीयं रीयमाणा पुढविं पेच्चेमो अभिहणामो जाव उवद्दवेमो, अम्हे णं अज्जो ! रीयं रीयमाणा कायं वा जोगं वा रियं वा ॥ पुडुच्च देसं देसेणं वयामो, पएसं पएसेणं वयामो, तेणं अम्हे देसं देसेणं वयमाणा पएस पएसेणं वयमाणा नो पुढविं पेच्चेमो अभिहणामो जाव उवद्दवेमो, तए णं अम्हे पुढविं अपेच्चेमाणा अणभिहणेमाणा जाव अणुवद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं संजय जाव एगंतपंडिया यावि भवामो, तुभे णं अज्जो ! अप्पणा चेव तिविहं तिविहेणं अस्संजय जाव बाला यावि भवह।
१९. [ प्रतिवाद ] तब उन स्थविरों ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा-'आर्यो ! हम गमन करते हुए पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते (कुचलते) नहीं, हनते नहीं, यावत् मारते नहीं। हे आर्यो ! हम गमन करते हुए काय (अर्थात् शरीर के लघुनीति-बड़ीनीति आदि कार्य) के लिए, योग (अर्थात् ग्लान आदि की सेवा) के लिए, ऋतु (अर्थात् अप्कायादि-जीवसंरक्षणरूप संयम) के लिए एक देश (स्थल) से दूसरे देश (स्थल) में और एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाते हैं। इस प्रकार एक स्थल से दूसरे स्थल में और एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाते हुए हम पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते नहीं, उनका हनन नहीं करते, यावत् उनको मारते नहीं। इसलिए पृथ्वीकायिक जीवों को नहीं दबाते हुए, हनन न करते हुए यावत् नहीं मारते हुए हम त्रिविध-त्रिविध संयत, विरत, यावत् एकान्तपण्डित हैं। किन्तु हे आर्यो ! तुम स्वयं त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत, यावत् एकान्तबाल हो।'
___19. The senior ascetics replied to the heretics-Noble ones ! While walking we do not bear down on earth-bodied beings (prithvikaaya jivas), do not trample them ... and so on up to ... and do not kill them. Noble ones ! We move from one area to another and one place to another solely for the purpose of nature's call including disposing (kaaya) serving the ailing (yoga) and protecting life forms including water-bodied beings (ritu). While walking thus, from one area to another and one place to another, we do not bear down on earth-bodied beings (prithvikaaya jivas), do not trample them ... and so on up to ... and do not kill them. Therefore, by not bearing down on earth-bodied beings (prithvikaaya jivas), not trampling them ... and so on up to ... and not killing them we are observing restraint (samyat) ... and so on up to ... 11 through three means (karan) and three methods (yoga)... and so on up to ... we are perfectly prudent (ekaant pundit). In fact it is you who are devoid of restraint (asamyat) ... and so on up to ... through three means
95555555555555555555558
卐))))555555555555555555
| अष्टम शतक : सप्तम उद्देशक
(147)
Eighth Shatak: Seventh Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org