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)) )))) )) )) ))) )) १५. तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी-तुब्भे णं अज्जो ! दिज्जमाणे अदिने तं चेव जी जाव गाहावइस्स णं तं, णो खलु तं तुभं, तए णं तुभे अदिनं गेण्हह, तं चेव जाव एगंतबाला यावि , भवह।
१५. [ प्रत्युत्तर ] यह सुनकर उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीर्थिकों से इस प्रकार कहाआर्यो ! तुम्हारे मत में दिया जाता हुआ पदार्थ ‘नहीं दिया गया' इत्यादि कहलाता है, यह सारा वर्णन पहले कहे अनुसार यहाँ करना चाहिए; यावत् वह पदार्थ गृहस्थ का है, तुम्हारा नहीं; इसलिए तुम अदत्त का ग्रहण करते हो, यावत् पूर्वोक्त प्रकार से तुम एकान्तबाल हो।
15. [Ans.] The senior ascetics replied to the heretics-Noble ones ! According to you, things in process of being given are said to be 'not given', (repeat as aforesaid aphorism 8) ... and so on up to ... "The thing belonging to the householder and not me has been snatched away.” That is the reason we say that you accept things not given to you (adatt) ... and so on up to ... you are complete ignorant (ekaant baal).
विवेचन : अन्यतीर्थिकों की भ्रान्ति-अन्यतीर्थिकों ने इस भ्रान्तिवश स्थविर मुनियों पर आक्षेप किया था कि श्रमणों का ऐसा मत है कि दिया जाता हुआ पदार्थ नहीं दिया गया, ग्रहण किया जाता हुआ पदार्थ नहीं ग्रहण किया गया और पात्र में डाला जाता हुआ पदार्थ नहीं डाला गया; माना गया है। किन्तु जब स्थविरों ने इसका प्रतिवाद किया और उनकी इस भ्रान्ति का निराकरण 'चलमाणे चलिए' के सिद्धान्तानुसार किया, तब वे अन्यतीर्थिक निरुत्तर हो गये, उल्टे उनके द्वारा किया गया आक्षेप उन्हीं पर आरोपित हो गया। _ 'दिया जाता हुआ' वर्तमानकालिक व्यापार है, और 'दत्त' भूतकालिक है, अतः वर्तमान और भूत दोनों अत्यन्त भिन्न होने से दीयमान (दिया जाता हुआ) दत्त नहीं हो सकता, दत्त ही 'दत्त' कहा जा सकता है, यह अन्यतीर्थिकों की भ्रान्ति थी। इसी का निराकरण करते हुए स्थविरों ने कहा- 'हमारे मत से क्रियाकाल और
इन दोनों में भिन्नता नहीं है। जो 'दिया जा रहा है, वह 'दिया ही गया' समझना चाहिए। (वृत्ति, पत्रांक ३८१)
Elaboration-Misunderstanding of heretics-The heretics blamed the senior ascetics of misconduct because they believed that according to the senior ascetics things in process of being given are said to be 'not given', things in process of being accepted are said to be 'not accepted', and 41 things being poured in a bowl are said to be 'not poured'. But when the 41 senior ascetics refuted it on the basis of the principle of 'chalamane chaliye' or 'a thing moving is said to have moved', the heretics were silenced. In fact their blame rebounded on them.
The heretics were confused because they believed that being given' describes an act of the present time whereas 'has been given' describes an act of the past. Present and past are far apart because only what has
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अष्टम शतक : सप्तम उद्देशक
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Eighth Shatak: Seventh Lesson |
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