________________
8
四FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF
9595555555555555555555555558
[प्र. २ ] पुरिसे णं भंते ! ते अंतरे हत्थेण वा पादेण वा अंगुलियाए वा, सलागाए वा कटेण वा ॥ फ़ किलिंचेण वा आमुसमाणे वा सम्मुसमाणे वा आलिहमाणे वा विलिहमाणे वा अनयरेण वा तिक्खेणं
सत्थजाएणं आच्छिंदेमाणे वा विच्छिंदेमाणे वा, अगणिकाएणं वा समोडहमाणे तेसिं जीवपदेसाणं किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पायइ, छविच्छेदं वा करेइ ?
[उ. ] णो इणट्टे समढे, नो खलु तत्थ सत्थं संकमति।
[प्र. २ ] भगवन् ! कोई पुरुष उन कछुए आदि के खण्डों के बीच के भाग को हाथ से, पैर से, 5 अंगुलि से, शलाका (सलाई) से, काष्ठ से या लकड़ी के छोटे-से टुकड़े से थोड़ा स्पर्श करे, विशेष स्पर्श करे, थोड़ा-सा खींचे या विशेष खींचे या किसी तीक्ष्ण शस्त्रजात (शस्त्रसमूह) से थोड़ा छेदे अथवा विशेष छेदे अथवा अग्निकार्य से उसे जलाए तो क्या उन जीवप्रदेशों को थोड़ी या अधिक बाधा (पीड़ा) उत्पन्न 4 कर पाता है अथवा उसके किसी भी अवयव का छेद कर पाता है ?
[उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि उन जीवप्रदेशों पर शस्त्र (आदि) का प्रभाव नहीं होता।
6. [2] (Q.) Bhante ! Suppose a person touches this intervening space between pieces of tortoise etc., lightly or forcefully, with his hand, foot, finger, needle, wood or a sliver of wood; pulls it lightly or forcefully or pierces it lightly or forcefully with a sharp instrument or burns it with fire; then is he able to cause a little or more pain or pierce any part of it ?
(Ans.] No, Gautam ! That is not correct because weapons (etc.) have no effect on those soul-space-points.
विवेचन : (१) किसी भी जीव के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देने पर भी उसके बीच के भाग कुछ काल । ॐ तक जीवप्रदेशों से स्पृष्ट रहते हैं, तथा (२) कोई भी व्यक्ति जीवप्रदेशों को हाथ आदि से छुए, खींचे या शस्त्रादि ऊ से काटे तो उन पर उसका कोई प्रभाव नहीं होता। इससे स्पष्ट है कि मूर्त का अमूर्त जीवप्रदेशों पर बिल्कुल भी है के प्रभाव नहीं पड़ता है जैसे कि हम देखते हैं कि छिपकली की पूँछ कट जाने पर भी काफी देर तक कटी हुई पूँछ
छटपटाती रहती है। उस पूँछ और शरीर के बीच में आत्म प्रदेश होते हैं वहाँ बीच में कैंची चलाने पर भी उन आत्म प्रदेशों पर कोई अन्तर नहीं पड़ता।
Elaboration (1) Even when the body of a living being is cut to pieces 卐 soul-space-points pervade the intervening area for some time. (2) There
is no effect of any touch, pull or weapon on soul-space-points. ॐ आठ पृथ्वियों का कथन EIGHT WORLDS
७. [प्र. ] कइ णं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ? [उ. ] गोयमा ! अट्ठ पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा-रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा पुढवी, ईसिपदभारा।
७. [प्र. ] भगवन् ! पृथ्वियाँ कितनी कही हैं ? _ [उ. ] गौतम ! पृथ्वियाँ आठ कही हैं। वे इस प्रकार हैं-रत्नप्रभापृथ्वी यावत् अधःसप्तमा (तमस्तमा) पृथ्वी और ईषत्प्रागभारा (सिद्धशिला)।
近5FFFFFFFFFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
1'ल
| भगवती सूत्र (३)
(98)
Bhagavati Sutra (3)
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International