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7. [Q.] Bhante ! How many worlds (prithvis) are there ?
[Ans.] Gautam ! There are said to be eight worlds. They are— 5 Ratnaprabha prithvi... and so on up to .... Adhah-saptama (Tamastama) prithvi and Ishatpragbhara prithvi (Siddhashila).
८. [ प्र. ] इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी किं चरिमा, अचरिमा ? चरिमपदं निरवसेसं भाणियव्वं फ्र जाव वेमाणिया णं भंते ! फासचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ?
[ उ. ] गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।
॥ अट्टमस : तइओ उद्देसओ समत्तो ॥
८. [ प्र. ] भगवन् ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी चरम ( प्रान्तवर्ती - अन्तिम ) है अथवा अचरम ( मध्यवर्ती ) है ?
[ उ. ] ( गौतम !) यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का समग्र चरमपद (१०वाँ) कहना चाहिए; यावत् - (प्र.) भगवन् ! वैमानिक स्पर्शचरम से क्या चरम हैं, अथवा अचरम हैं ?
(उ.) गौतम ! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं । (यहाँ तक कहना चाहिए ।)
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; (यों कहकर भगवान गौतम यावत् विचरण करते हैं ।)
8. [Q.] Bhante ! Is this Ratnaprabha prithvi the extreme (last) one or 5 is it non-extreme (middle) one ?
फफफफफफफफ
[Ans.] Gautam ! It is last as well as middle. (As in Prajnapana Sutra) "Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so. " With these words... and 5 so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
अष्टम शतक : तृतीय उद्देशक
विवेचन : चरम का अर्थ यहाँ प्रान्त या पर्यन्तवर्ती ( अन्तिम सिरे पर रहा हुआ) है । यह अन्तवर्तित्व अन्य द्रव्य की अपेक्षा से समझना चाहिए। जैसे- पूर्वशरीर की अपेक्षा से चरमशरीर कहा जाता है। अचरम का अर्थ 卐 है - अप्रान्त यानी मध्यवर्ती । यह भी आपेक्षिक है। जैसे कि कहा जाता है-अन्यद्रव्य की अपेक्षा यह अचरम द्रव्य है अथवा अन्तिम शरीर की अपेक्षा यह मध्य शरीर है। (विस्तृत वर्णन प्रज्ञापना पद १० से जानें )
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॥ अष्टम शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त ॥
Elaboration-Here the term charam does not mean absolutely extreme or the last one, it is used in relative context or relative to something. In the same way acharam does not mean absolutely non-extreme. It is also relative to something. Relative to hells it is the extreme but relative to a larger group of other areas in space it is non-extreme. (For detailed 卐 description refer to Chapter 10 of Prajnapana Sutra)
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● END OF THE THIRD LESSON OF THE EIGHTH CHAPTER.
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Eighth Shatak: Fourth Lesson 卐
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