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सम्राट्
पुनः वन्दना करके
भगवन् ! धर्म
प्राप्ति का फल क्या है ?
गुरुदेव ! यह सब समृद्धि आपकी कृपा से ही मिली है इसलिए यह सम्पूर्ण राज्य आपके चरणों में समर्पित करता हूँ।
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'पूछा
धर्म का सर्वोत्तम फल
है-मोक्ष और सामन्य फल वैभव आदि की प्राप्ति ।
"सम्राट सम्प्रति
सम्राट् ! हम त्यागी साधु एक सुई का परिग्रह भी नहीं रखते। यह राज्य वैभव कैसे स्वीकार कर सकते हैं?
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फिर सम्राट् ने गुरुदेव के चरणों का स्पर्श कर निवेदन किया-1
राजन् ! शुद्ध सामायिक रूप चारित्र का तो असीम फल है, परन्तु तुमने अव्यक्त सामायिक चारित्र का स्पर्श किया, उसका फल है विशाल राज्य संपदा की प्राप्ति ।
भगवन् ! सामायिक चारित्र का क्या फल है ?
गुरुदेव ! मुझे धर्म का मार्ग बताइए, कल ही मेरी माता ने कहा था, आप ही मुझे धर्म का मार्ग बतायेंगे।
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सम्राट् ! अभी आप रथ महोत्सव में सम्मिलित होकर जीवन्त स्वामी की वन्दना पूजा कीजिए। फिर समय पर आपकी जिज्ञासा का समाधान भी करेंगे।
सम्राट् नंगे पैरों रथयात्रा जनता के साथ-साथ चलने लगा।
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