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सम्राट सम्प्रति
नंगे पाँव सम्राट् को दौड़ता देख लोग एक ओर हट गये। सम्राट् सम्प्रति दौड़कर आर्य सुहस्ती के सामने पहुँचा। तीन बार प्रदक्षिणा करके वन्दना की। आचार्यश्री आश्चर्यपूर्वक सम्राट् को देखने लगे। हाथ जोड़कर सम्राट् ने पूछा
गुरुदेव ! आप मुझे पहचानते हैं?
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हाँ, आप सम्राट् सम्प्रति हैं, महाराज अशोकवर्धन के पौत्र ! पितृभक्त वीर कुणाल | के पुत्र आपको कौन नहीं पहचानता ?
दो क्षण आचार्यश्री एकाग्र होकर उसे देखते हैं।
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आचार्यश्री हँसते हुए बोले ।।
नहीं ! गुरुदेव ! मेरी असली
पहचान बताइये।
और फिर मुस्कराकर बोले
राजन्ं ! मैंने आपको अच्छी तरह पहचान लिया। कौशाम्बी नगरी में एक भिक्षुक ने
मोदक खाने के लिए दीक्षा ली थी। फिर अति आहार से उसी दिन उसकी मृत्यु हो गई। वही आत्मा आज सम्राट् सम्प्रति के रूप में यहाँ उपस्थित है।
सम्राट् के पूर्व जीवन का वृत्तान्त सुनकर सभी आश्चर्यचकित एक-दूसरे को देखने लगे।
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