________________
सम्राट सम्प्रति आचार्यश्री ने कुछ सोचकर कहा
भद्र ! यदि तू साधु बन जाये । मैं तैयार हूँ। मुझे वत्स ! भिक्षा से/हे दयालु पुरुष ! मैं भूख तो भरपेट भोजन पा सकता । दीक्षा दीजिए। मैं साधु | प्राप्त भोजन साधु से मर रहा हूँ। क्या किसी
है। इस भिक्षा पात्र का भोजन बनकर आप जैसा किसी अन्य गृहस्थ मरते मनुष्य को बचाना | केवल साधु ही कर सकता है। । कहेंगे, करूंगा। को नहीं दे सकते। आपका धर्म नहीं है।
आचार्यश्री ने वहीं पर उस भिखारी को दीक्षा दी। मुनिवेष दिया और कहा
चल भीतर। अब भरपेट भोजन
कर ले।
नवदीक्षित साधु ने डटकर लड्डू-खीर आदि का भोजन किया।
फिर आचार्यश्री ने श्रावक-श्राविकाओं के सामने उस नवदीक्षित मुनि को उपस्थित कर कहा
यह आज का दीक्षित मुनि है।
CONNO
10
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org