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सम्राट सम्प्रति धनवान सेठ-सेठानियों ने भक्तिपूर्वक मुनि की वन्दना की। आचार्यश्री ने नवदीक्षित मुनि से कहा-20 उनकी चरण धूलि लेकर सिर पर लगाने लगे। नवदीक्षित । देख, यह सब मुनि के गलदेव ! मुझे मुनि सोचता है- त ये सेठ सेठानी कभी मुझे बैंतों । त्यागी जीवन की महिमा - व्रत की शिक्षा भी से पिटवाते थे| धक्क मार-मारकर है। दुनियाँ में त्याग व व्रत
दीजिए, धर्म का भगाते थे। आज मुनि बनते ही N की पूजा होती है।
बोध भी दीजिए। Fishra मेरे पाँव छू रहे हैं। धन्य है।
मुनि का जीवन
आज पहले अपनी भूख मिटा ले, फिर धर्म बोध
भी देंगे।
मध्यान के बाद नव दीक्षित ने कहामुझे भूख लगी है। यह गोचरी भोजन दीजिए। तेरे सामने रखी
है, जितना खाना चाहे खाकर मन
वह भूमि पर गिरकर छटपटाने लगा। सेठ धनपाल ने वैद्य को बुलाया। वैद्य ने नाड़ी देखते हुए कहा/अति भोजन से (विशुचिका रोग हो गया है। दवा दे
देता हूँ।
भर ले।
बहुत दिनों का भूखा वह भोजन पर टूट पड़ा। कुछ देर
बाद बोलामेरा पेट फूल गया है। आह "सांस नहीं ली जाती है।
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