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चिन्तामणि पार्श्वनाथ
धरणेन्द्र देव ने असुर मेधमाली को पहले फटकारा, फिर युद्ध के लिये MEW ललकारा। धरणेन्द्र की ललकार सुनकर मेघमाली भयभीत हो गया और अपनी प्राण-रक्षा के लिये पार्श्वनाथ प्रभु के चरणों में हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगा। KARTA
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भद्र क्षमा और शान्ति के जल से द्वेष अग्नि को शांत करो।
प्रभु ! मैं अज्ञानी हूँ।वैर भावना के वश पिछले जन्मों में मैंने आपको बहुत कष्ट दिये। मेरे सभी अपराध क्षमा कर दीजिए। मैं आपकी शरण
में आया हूँ। DOT
पार्श्व प्रभु के उपदेश सुनकर कमठ के जन्म-जन्मों की द्वेषअग्नि शांत हो गयी।
उसके बाद प्रभु पार्श्वनाथ वाराणसी के निकट आश्रम पद उद्यान में आकर कायोत्सर्ग ध्यान करने लगे। उनके प्रभाव से जंगली जीवों में परस्पर प्रेम का संचार होने लगा And
# कायोत्सर्ग = शरीर के मोह का त्याग करना।
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