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चिन्तामणि पार्श्वनाथ
दीक्षा से बयासी दिन पश्चात् चैत्र कृष्णा ४ के दिन भगवान को इसी उद्यान में धातकी वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। अब वे वीतराग जिनपद को प्राप्त हो गये।
देवताओं ने समवसरण की रचना की। जहाँ तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने प्रथम धर्म देशना दी जिसे सुनकर सैकड़ों व्यक्तियों ने मुनिधर्म तथा श्रावक धर्म स्वीकार किया।
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अहो भव्य प्राणियों! जरा, रोग और मृत्यु से भरे इस संसार रूपी महान् भयानक वन में धर्म के सिवाय और कोई रक्षक सहायक नहीं है। धर्म ही सच्चे सुख का मार्ग है।
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इस तरह भगवान पार्श्व ने लगभग ७० वर्षों तक लोगों को धर्म का मार्ग दिखाया।
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