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________________ चिन्तामणि पार्श्वनाथ थोड़ी देर में चारों तरफ प्रलय का दृश्य उपस्थित हो गया। असुर मेघमाली तेज - तूफानी हवाओं के साथ मूसलाधार जल वर्षा कर रहा था। मालIAMERI इस उपसर्ग के कारण धरणेन्द्र पनावती का सिंहासन | डोलने लगा। धरणेन्द्र ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा | तो उसे मेघमाली देव की करतूत का पता चला। हा हा हा..... AVAN a हम आज जो कुछ हैं वह सब प्रभु पार्श्व के उपकार का फल है। दुष्ट मेघमाली प्रभु को कष्ट | पहुंचा रहा है। हमें तुरन्त उन की सेवा करनी चाहिए। नागेन्द्र धरणेन्द्र इन्द्राणी पन्नावती के II साथ तुरन्त भगवान पार्श्वनाथ की सेवा | में पहुंचे। प्रभु को जलमग्न होता देख सर्वप्रथम कुण्डली मारकर प्रभु के 5 चरणों के नीचे एक कमल जैसा आसन बना दिया और अपना फन प्रभु के सिर पर छतरी की तरह तान दिया। प्रभु पार्श्वनाथ जल में कमल के समानस्थित हो गये। दोनों ने प्रभु की वन्दना की। 29 Jain E llion International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002804
Book TitleChintamani Parshwanath Diwakar Chitrakatha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children Story, & Literature
File Size21 MB
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