________________
। इधर शिकारी भील को एक सांप ने डंस लिया।
चिन्तामणि पार्श्वनाथ
Jain Education International
05
सातवें जन्म में पार्श्वनाथ का जीव पूर्व विदेह क्षेत्र में सुवर्णबाहु नाम का चक्रवर्ती बना। एक बार चक्रवर्ती सुवर्णबाहु घोड़े पर चढ़कर जंगल में अकेले ही बहुत दूर निकल गये। उस घने वन के आरम्भ में एक सुन्दर तपोवन था। वहाँ एक सलौने मृग शिशु को गोद में लिये हुए एक सुन्दरी कन्या फूल तोड़ती हुई दिखाई दी।
हिंसा के विचारों में प्राण त्यागकर वह नरक में गया।
सुवर्णबाहु वृक्षों की ओट में छुपकर उसका अद्भुत सौन्दर्य देखने लगे। कन्या के बालों में फूल लगे हुए थे जिसकी सुगंध पर मंडराते भंवरे बार-बार उसके गालों पर आकर बैठ जाते थे। तंग आकर उसने अपनी सखि को पुकारा
Plati
सखि! जल्दी आओ इन भ्रमर-राक्षसों से मेरी रक्षा करो।
बहन ! तुम्हारी रक्षा तो महाराज सुवर्णबाहु ही कर सकते हैं।
यह वन-कन्या तो किसी राजकुमारी जैसी लगती है।
13
For Private & Personal Use Only
wwww.jainelibrary.org