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चिंतामणि पार्श्वनाथ
मुनि की वाणी सुनकर गजराज को अपना पिछला जन्म याद आ गया। सूंड नीची करके उसने मुनि के चरण छुए और शांति के साथ उनके सामने आकर बैठ गया। मुनि ने गजराज को समझाया
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"तुमने अपनी पत्नी और भाई कमठ पर क्रोध किया और क्रोध की दशा में ही प्राण त्याग इसलिए मानव जन्म खोकर पशु (तिर्यंच) बने हो । अब क्रोध छोड़ो। क्षमा धारण करो। क्षमा से ही तुम्हारा कल्याण होगा। क्रोध से पतन होता है, क्षमा से उत्थान !
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गजराज अब बिल्कुल साधु जैसा शान्त, क्षमा- शील और तपस्वी बन गया। वह कई दिनों तक सूर्य के सामने निराहार बैठा रहता। तप करता। इस तरह उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया। एक दिन गजराज सरोवर में पानी पीने गया तो दलदल में फँस गया। शक्ति क्षीण होने से वह कीचड़ से निकल नहीं सका। w
ओह ! मैं फँस गया। अब तो बाहर निकलना भी मुश्किल है।
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अब मैं कभी किसी पर क्रोध नहीं करूँगा।
क्षमा से ही मेरी आत्मा) को शान्ति मिलेगी।
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