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चिंतामणि पार्श्वनाथ
मृत्यु के पश्चात् मरुभूति के जीव (आत्मा) ने विन्ध्याचल की तलहटी में हाथी के रूप में जन्म लिया। अपने बल पराक्रम से वह हाथियों के यूथ (झुण्ड) का स्वामी गजपति बन गया।
एक बार अटविंद मुनि विंध्याचल की तलहटी में एक जलाशय के निकट ध्यान कर रहे थे। हथिनियों के साथ क्रीड़ा करता हुआ गजपति उधर आ गया। तपस्वी मुनि को अपने क्रीड़ा-स्थल पर तप करता देखकर वह क्रुद्ध हो गया।
(यह कौन तपस्वी क्रीड़ास्थल) पर तप करके हमारी क्रीड़ा में विघ्न डाल रहा है?
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PARENDIN
गजराज क्रुद्ध होकर मुनि पर सूंड से प्रहार करने ही वाला था कि मुनि ने हाथ ऊँचा उठाया। मुनि के तप और शान्ति के प्रभाव से गजराज जहाँ था वहीं रुक गया। मुनि आत्मज्ञानी थे। उन्होंने गजपति को उद्बोधन किया
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हे गजराज! क्या तुम मुझे पहचानते हो? अपने आपको पहचानते हो? पिछले जन्म में तुम मेरे राज-पुरोहित मरूभूति थे..याद करो.
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