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चिंतामणि पार्श्वनाथ इधर कमठ का जीव भी बुरे विचारों (आर्तध्यान) मे मरकर उसी जंगल में कुक्कुट जाति का उड़ने बाला सांप बना। सांप उड़ता-उड़ता उधर ही आ पहुंचा जहाँ गजराज दलदल में फंसा था। गजराज को देखते ही उसमें पूर्व जन्म का वैर जाग उठा/
अरे! यह तो वही मरुभूति है, जिसने मेरा घोर अपमान कराया था। आज
अपना पुराना बदला लूँगा।
सांप ने उड़कर गमराज के पेट पर विषैले डंक मारे। विषैले इंक की जलन से गजराज के शरीर में आग-सी लग गई। असह्य पीड़ा होने लगी। किंतु उसे मुनि का उपदेश याद था उसने सर्प से कहा
हे बन्धु! क्रोध को तमो! क्षमा
से ही मन को शान्ति । मिलेगी। सद्गति होगी।
शान्ति के साथ पीड़ा सहते हुए गजराज ने प्राण त्याग दिये।
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