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म्यास, मुद्राएं, यन्त्र, चक्र, मण्डल आदि
tigers : आर्थर एवालोन द्वारा सम्पादित (तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द २, १६१३ )
पारानन्वसूत्र : गायक० सं० सीरीज ( १६३१) द्वारा प्रकाशित ; जैसा कि डा० बी० भट्टाचार्य का कथन है, यह ६०० ई० के पूर्व का नहीं है ।
प्रज्ञोपायविनिश्वय सिद्धि : तिब्बत में प्रशंसित एवं पूज्य तथा ५४ सिद्धों में एक अनंगवज्र द्वारा प्रणीत । बौद्ध वज्रयान ग्रन्थ; गायक० सं० सी० ( १६२६) द्वारा प्रकाशित ; डा० बी० भट्टाचार्य के मतानुसार लगभग ७५० ई० में प्रणीत ।
प्रपञ्चसार : ( शंकराचार्य द्वारा लिखित माना गया है) पद्मपाद की विवरण नामक टीका के साथ; तान्त्रिक टेक्ट्स (जिल्द ३) एवं नया संस्करण ( जिल्द १८ - १६ ) सन् १६३६ में । ३६ पटलों में । प्राणतोषिणी : रामतोषण भट्टाचार्य द्वारा संगृहीत एवं जीवानन्द (कलकत्ता) द्वारा प्रकाशित; यह १०६७ पृष्ठों का एक बृहद् आधुनिक ग्रन्थ है ।
ब्रह्मसंहिता : जीव गोस्वामी की टीका के साथ; वैष्णवों के लिए, तान्त्रिक टेक्ट्स (जिल्द १५ ) में प्रका
शित।
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मन्त्रमहोदधि : महीधर द्वारा प्रणीत; लेखक की टीका; वि० सं० १६४५ (१५८८-८६ ई० ) में प्रणीत; जीवानन्द एवं वेंकटेश्वर प्रेस द्वारा प्रकाशित ।
महानिर्वाणतन्त्र : हरिहरानन्द भारती की टीका के साथ। यह एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, किन्तु परचात्कालीन है; इसका प्रकाशन कई बार हुआ है; ए० एवालोन द्वारा सम्पा० ( तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द १३, १४ उल्लासों में) । इस ग्रन्थ में गणेश एण्ड कम्पनी, मद्रास ( १६२६) का संस्करण उपयोग में लाया गया है । १६५३ ई० का संस्करण कहीं-कहीं परिवर्तित है ।
शिवानन्द की टीका; एस० बी० सीरीज
मातृकचित्र विवेक : स्वतन्त्रानन्दनाथ द्वारा प्रणीत; ( १६३४ ) में प्रकाशित ।
माहेश्वरतन्त्र : ५१ पटलों एवं ३०६० श्लोकों में है (१।१५ एवं २६ । ११), २५ वैष्णव तन्त्रों के नाम आये हैं ( २६ / १६ - २० ) ; बौद्ध तन्त्र भ्रामक हैं और क्रूर कर्मों के लिए हैं ( २६।२१-२२ ) ।
(चौ० सं० सी० ) ; इसमें ६४ तन्त्रों का उल्लेख इसमें ऐसा मत प्रकाशित है कि
Rear : ३२ अध्यायों एवं ८२१ पृष्ठों में एक बृहद् ग्रन्थ ( १६००० श्लोकों में ); वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई, १६०८ ई० ।
योगिनीतन्त्र : जीवानन्द द्वारा प्रकाशित; एकादशीतत्त्व ( पृ० ५८ ) में रघुनन्दन द्वारा उद्धृत । योगिमीहृदय: नित्याषोडशिकार्णव के अन्तिम तीन अध्यायों (६-८) को इस नाम से पुकारा जाता है। योगिनी हृदयदीपिका : पुण्यानन्दनाथ के शिष्य, अमृतानन्दनाथ द्वारा लिखित ; एस० बी० सीरीज ( १६२३ ) में प्रकाशित; लगभग १०वीं या ११वीं शती में लिखित ।
यामलतन्त्र : जीवानन्द द्वारा प्रकाशित (द्वितीय संस्करण १८६२ ) । ६६ अध्यायों एवं ६००० से अधिक श्लोकों में एक बृहद् ग्रन्थ (अनुष्टुप छन्द में ); भैरवी द्वारा मैरव (शिव) को सम्बोधित । सवा लाख श्लोकों से परिपूर्ण कहा गया है ( डकन कालेज, पाण्डुलिपि सं० ६६७ ( ! ), १८६५ - १६०२ ) | घनदापुरश्चरणविधि ने कहा है कि यह रुद्रयामल का एक अंश है ( इति रुद्रयामल - सपादलक्षग्रन्थो .. किंकिणी-तन्त्रोक्तधनदापुरश्चरणविधिः ) ; बी० ओ० आर० आई० कैटॉलॉग (जिल्द १६, पृ० २४७ ) ।
ललितासह नाम : बीजापुर मुस्लिम राजा के मंत्री गम्भीरराय के पुत्र भास्करराय की टीका सौभाग्यभास्कर के साथ; संवत् १७८५ ( = १७२६ ई० ) में लिखित; निर्णयसागर प्रेस में प्रकाशित ( १६३५) ।
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