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धर्मशास्त्र का इतिहास
वरिवस्यारहस्य:भास्करराय (दीक्षा के उपरान्त भासरानन्दनाथ नाम वाले) द्वारा लिखित; स्वयं लेखक की टीका 'प्रकाश'। १७०० से १७५० ई० तक लेखक का काल है। अद्यार में प्रकाशित, १६३४ ।
विष्णुसंहिता :३० पटलों में, त्रिवेन्द्रम् सं० सी० से प्रकाशित, १६२५ ।
शक्तिसंगमतन्त्र : चार भागों में, यथा--काली, तारा, सुन्दरी एवं छिन्नमस्ता; १५०५-१६०७ के मध्य प्रणीत । देखिए पूना ओरियण्टलिस्ट, जिल्द २१, पृ० ४७-४६, (१५३०-१७०० ई. के बीच) ।
शक्तिसूत्र : सरस्वती भवन सीरीज़, जिल्द १० (पृ० १८२-१८७); ११३ सूत्र; १६ सूत्रों पर टीका; टीका ने लेखक का नाम अगस्त्य दिया है। सूत्र में जैमिनि एवं व्यास के नाम आये हैं।
शाक्तप्रमोद : (हाल का ग्रन्थ), शिवहर के प्रमुख (सरदार) श्री राजदेवनन्दन सिंह द्वारा संकलित; वेंकटेश्वर प्रेस द्वारा प्रकाशित, १९५१; इसमें १७ तन्त्र हैं, यथा-कालीतन्त्र, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुराभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमलात्मिका, कुमारिका, बलिदानक्रम, दुर्गा, शिव, गणेश, सूर्य, विष्ण।
शारदातिलक : लक्ष्मण-देशिकेन्द्र (उत्पल के शिष्य); तन्त्र पर अत्यन्त प्रसिद्ध ग्रन्थों में एक । औफेट (पृ० ६४) ने कई टीकाओं के नाम दिये हैं, जिनमें सर्वोत्तम है राघवभट्टकृत पदार्थादर्श (सं० १५५० =१४६३-६४ ई० में प्रणीत) । राघवभट्ट महाराष्ट्री थे और गोदावरी के तट पर जनस्थान (पंचवटी) के निवासी थे। काशी सं० सी० एवं तान्त्रिक टेक्ट्स (जिल्द १६ एवं १७) द्वारा प्रकाशित । शारदातिलक का प्रणयन लगभग ११वीं शती में हुआ। रघुनन्दन ने स्पष्ट रूप से अपने ज्योतिष्तत्त्व (पृ० ५८०) में शारदातिलक के टीकाकार राघवभट्ट का नाम लिया है।
श्रीचक्रसम्भारतन्त्र : बौद्ध ग्रन्थ; तिब्बती पाण्डुलिपि, अंग्रेजी अनुवाद, लामा काजी दवा सन्द्रुप द्वारा; ए० एवालोन द्वारा तान्त्रिक टेक्ट्स (१६१६) में सम्पादित ।
श्रीविद्यारत्लसत्र : गौडपाद द्वारा लिखित कहा गया है; १०१ सत्रों में, विद्यारण्य के शिष्य शंकराचार्य की टीका; एस० बी० (सरस्वती भवन) टेक्ट्स सीरीज, बनारस (१६२४) में पं० गोपीनाथ कविराज द्वारा सम्पादित।
श्यामारहस्य : पूर्णानन्द द्वारा प्रणीत; १६ अध्यायों में; जीवानन्द संस्करण; १६ वीं शती ।
षट्वनिरूपण : पूर्णानन्द कृत; ८५ श्लोकों में; तान्त्रिक टेक्ट्स (जिल्द २); शक सं० १४६६ (= १५७७-७८ ई०) में प्रगीत ।
सनत्कुमारतन्त्र : सनत्कुमार एवं पुलस्त्य के बीच संवाद; ११ पटलों एवं ३७५ श्लोकों में: ज्येष्ठाराम मुकुन्दजी (बंबई) द्वारा १६०५ ई० में प्रकाशित । इसमें योग एवं तान्त्रिक विधि का मिश्रण है और 'क्ली, गौं' आदि तान्त्रिक बीजों में कृष्णपूजा का विवरण भी है।
साधनमाला : गायकवाड़ सं० सी० द्वारा दो खण्डों में प्रकाशित; डा० बी० भट्टाचार्य द्वारा भूमिका (खण्ड २); ३१२ साधनाएँ हैं, अधिकांश के प्रणेताओं के नाम अज्ञात हैं, वे सभी तिब्बती कंग्यूर हैं। डा. भटटाचार्य का कथन है कि साधनाएँ तीसरी शती से १२ वीं शती तक की हैं । विन्तरनिज इस बात को नहीं मानते कि प्रज्ञापारमितासाधन असंग द्वारा प्रणीत है (इण्डियन हिस्टॉरिकल क्वार्टरली, जिल्द , प० ५-६)।
साम्राज्यलक्ष्मी पीठिका : आकाशभैरव-महातन्त्र का एक अंश कहा गया है, तंजौर सरस्वती महल सीरीज मारा प्रकाशित; १३६ अध्यायों में, ३० अध्यायों में मन्त्र, जप, होम का उल्लेख है, ३१ के आगे से अध्याय राज्य के विभागों, राज्याभिषेक, उत्सवों (नववर्ष, रामनवमी, नवरात्र आदि) पर प्रकाश डालते हैं।
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