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म्यास, मुद्राएं, यन्त्र, चक्र, मण्डल आदि कुलचूड़ामणिमन्त्र :७ पटलों एवं ४३० श्लोकों में; आर्थर एवालोन द्वारा (तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द ४, १६१५) सम्पादित । १२४-१२ में ६४ तन्त्रों के नाम दिये गये हैं ।
कुलार्णवतन्त्र : इसमें १७ उल्लास एवं २००० से अधिक श्लोक हैं। यह प्रसिद्ध ग्रन्थ है और इसके उद्धरण पर्याप्त संख्या में लिये गये हैं (तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द ५, लन्दन, १६१७ में प्रकाशित) । यह प्राचीन तन्त्र है जो सम्भवत: १००० ई० में प्रणीत हुआ था । अन्त में ऐसा आया है कि यह ऊर्ध्वाम्नाय (५ आम्नायों में पाँचवाँ) तन्त्र है और १ लाख २५ सहस्र श्लोकों का एक अंश है। देखिए ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द १३, पृ० २०६-२११, जहाँ इस ग्रन्थ, इसके विषय-विस्तार पर प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती ने एक निबन्ध दिया है।
कौलावलीनिर्णय : ज्ञानानन्द गिरि द्वारा लिखित; २१ उल्लासों में; ए० एवालोन द्वारा सम्पादित (तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द १४); ११२-१४ में अनेक तन्त्रों का उल्लेख है जिनमें यामलों की भी चर्चा हुई है; १९६२-६३ में ६ पूर्ववर्ती गुरुओं के नाम दिये हुए हैं।
गणपतितत्त्व : प्राचीन जावा की पाण्डुलिपि, डा० (श्रीमती) सुदर्शना देवी सिंहल द्वारा आलोचित, सम्पादित, व्याख्यायित एवं अनूदित (इण्टरनेशनल एकेडेमी आव् साइंसेज, नयी दिल्ली, १६५८, द्वारा प्रकाशित); इसमें मूलाधार एवं अन्य चक्रों का उल्लेख है। चक्रों की स्थितियों , रंगों, योग के ६ अंगों का (यम, नियम, आसन को छोड़ दिया गया है और तर्क को सम्मिलित कर लिया गया है) विवेचन है। इसमें निष्कल से नाद की, नाद से बिन्दु की उत्पत्ति, मन्त्रों, बीजों आदि की चर्चा है ।
गुह्यसमाजतत्र या तथागत-गुह्यक (बौद्ध) : यह गायकवाड़ सं० सी० में प्रकाशित है ; डा० बी० भट्टाचार्य ने इसे चौथी शती का माना है (भूमिका, साधनमाला, जिल्द २, पृ० ६५)। किन्तु सम्भवत: यह ५वीं या छठी शती का है ।
गोरक्षसिद्धान्तसंग्रह : योग एवं तन्त्र का मिश्रण है। एस० बी० टेक्ट्स (१६२५) में प्रकाशित है।
विद्गगनचन्द्रिका : कालिदास द्वारा लिखित माना गया है। त्रिविक्रम तीर्थ द्वारा सम्पादित (तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द २०)।
जयाल्पसंहिता : गायकवाड़ सं० सी० में प्रकाशित। यह पाञ्चरात्र ग्रन्थ है। डा० बी० भट्टाचार्य ने इसे ४५० ई० का माना है। इसमें यक्षिणी-साधना, चक्रयन्त्रसाधना, स्तम्भन आदि तन्त्र विषय भी हैं।
ज्ञानसिद्धि : लेखक राजा इन्द्रभूति, जो अनंगवज्र के शिष्य एवं गुरु पद्मसम्भव के पिता थे; दो वज्रयान ग्रन्थ, गायकवाड़ सं० सी० में प्रकाशित; ७१७ ई० में प्रणीत; वज्रयान सिद्धान्तों का निष्कर्ष उपस्थित करता है।
पर्णवतन्त्र : आनन्दाश्रम प्रेस (पूना) द्वारा प्रकाशित; इसमें २६ पटल एवं लगभग २३०० श्लोक हैं। तन्त्रराजतन्त्र : तान्त्रिक टेक्ट्स (जिल्द ८ एवं १२) में सम्पादित (गणेश एण्ड कम्पनी, मद्रास, १६५४), सुभगानन्दनाथ द्वारा मनोरमा टीका; इसमें ३६ अध्याय हैं। इसमें कादि मत की चर्चा है। तन्त्रसार : कृष्णानन्द द्वारा लिखित; चौखम्बा सं० सी० द्वारा प्रकाशित; १७ वीं शती में प्रणीत ।
तन्त्रसार : अभिनवगुप्त द्वारा लिखित ; तन्त्रालोक का एक निष्कर्ष (संक्षिप्त रूप); काश्मीर सं० सी० (१६१८) द्वारा प्रकाशित; लगभग ११वीं शती में प्रणीत ।
तन्त्राभिधान : बीजनिघण्टु एवं मुद्रानिघण्टु के साथ; ए० एवालोन द्वारा तान्त्रिक टेक्ट्स (जिल्द १, १६१३) में सम्पादित ।
जयासह
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