SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गत प्रकरण का परिशिष्ट यहाँ कुछ ऐसे प्रकाशित ग्रन्थों का उल्लेख किया जा रहा है, जिन्हें प्रस्तुत लेखक ने तन्त्रों के विषय में लिखने के लिए पढ़ा है। संस्कृत ग्रन्थ संस्कृत वर्णमाला के अनुसार दिये जा रहे हैं । बहुत संक्षेप में लेखकों, तिथियों एवं संस्करणों का उल्लेख किया जा रहा है। अद्वयवजसंग्रह : लेखक अद्वयवज्र (११ वी शती); इसमें बौद्ध दर्शन सम्बन्धी छोटे-छोटे २१ ग्रन्थ हैं, एक मूल्यवान् भूमिका के साथ म० म० हरप्रसाद शास्त्री ने इसका सम्पादन किया है। गायकवाड़ ओरिएण्टल सीरीज़ । आर्य-मंजुश्रीमुलकल्प : (त्रिवेन्द्रम् संस्कृत सीरीज में तीन भागों में प्रकाशित); चौथी शती से नवीं शती के विभिन्न कालों का विवरण । यह बौद्ध ग्रंथ है और तिब्बती कंग्यर में सम्मिलित है। इस अध्याय हैं, किन्तु चीन के १० वीं शती के अनवाद में केवल २८ अध्याय हैं। डा० बी० भटटाचार्य ने इसे दूसरी शती का माना है, किन्तु विन्तरनित्ज ने असहमति प्रकट की है (इण्डियन हिस्टॉ० क्वार्टली, जिल्द ६, प०१)। जायसवाल ने 'इम्पीरियल हिस्ट्री आव इण्डिया' में ५३ पटलविसर में १००३ श्लोकों का माना है, जिनमें ६-३४४ श्लोक बुद्ध के निर्वाण तक के जीवन पर प्रकाश डालते हैं और वास्तविक इतिहास ७८ ई० से आठवीं शती का है जो ३४५-६८० श्लोकों में है। ईशानशिवगरदेवपद्धति : लेखक ईशानशिवगुरुदेव मिश्र, चार भाग, यथा-सामान्यपाद, मन्त्रपाद, क्रियापाद एवं योगपाद; इसमें लगभग १८००० श्लोक हैं और त्रिवेन्द्रम् सं० सी० द्वारा प्रकाशित है । इसमें गौतमीय तन्त्र, प्रपंचसार एवं भोजराज का उल्लेख है। लगभग ११०० ई० के आसपास या कुछ उपरान्त प्रणीत । कामकलाविलास : लेखक पुण्यानन्दनाथ, नटनानन्दनाथ की चिद्वल्ली नामक टीका के साथ (काश्मीर संस्कृत सीरीज़); ५५ श्लोक, अनुवाद एवं टिप्पणी आर्थर एवालोन द्वारा (गणेश एण्ड कम्पनी, मद्रास द्वारा प्रकाशित, १६५३), सर्वप्रथम तान्त्रिक टेक्ट्स (जिल्द १० ) में प्रकाशित। कालचकतन्त्र : बौद्ध, देखिए जे० ए० एस० बी०, पत्र, जिल्द २८,१६५२, पृ० ७१-७६; जहाँ विश्वनाथ वन्द्योपाध्याय द्वारा इस ग्रन्थ का विवरण दिया हुआ है। कालज्ञाननिर्णय : प्रो० पी० सी० बागची द्वारा सम्पादित (कलकत्ता सं० सी०; १६३४); हरप्रसाद शास्त्री ने पाण्डुलिपि को वीं शती की माना है, किन्तु प्रो० बागची ने उसे ११ वीं शती के मध्य में माना है। इसके लेखक का नाम मत्स्येन्द्रपाद आया है, जिसे हठयोगप्रदीपिका (११५-६) ने महासिद्धों में परिगणित किया है। कालविलासतन्त्र : ३५ पटलों में आर्थर एवालोन द्वारा सम्पादित (तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द ६, १६१७) । १०२०-२१ में इसने पारदार्य (परभार्यालंघन) की अनुमति दी है बशर्ते कि मैथुनकर्म पूर्ण न हुआ हो। इसने (२०११ में) कालिकापुराण का उल्लेख किया है तथा (१५१२-१३ में) एक ऐसी भाषा में मन्त्र दिया है जो असमी एवं पूर्वी बंगाली से मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy