________________
७७
न्यास, मुद्राएँ, यन्त्र, चक्र, मण्डल आदि तन्त्रराजतन्त्र (पटल ८, श्लोक ३०-३२) में आया है कि सभी वाञ्छित फलों को देने वाले यन्त्रों को सोने, चाँदी, ताम्र या वस्त्र या भूर्जपत्र पर चन्दनलेप, कपूर, कस्तूरी या कुंकुम आदि से खचित कर सिर पर या हाथों पर या गले, कमर या कलाई पर बाँध लेना चाहिए या कहीं रखकर उनकी पूजा करनी चाहिए । देखिए प्रपंचसारतन्त्र (११।४६) जहाँ ऐसी व्यवस्थाएँ दी हुई हैं।
तान्त्रिक सिद्धान्तों एवं आचारों से सम्बन्धित इस अध्याय के अन्त में एक विचित्र बात की चर्चा कर देना आवश्यक है। सायण-माधव भाइयों (१४ वीं शती) ने सर्वदर्शनसंग्रह नामक ग्रन्थ में १५ दर्शनों की चर्चा की है। किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि इन लोगों ने तन्त्रों के विषय में एक शब्द भी नहीं लिखा है, जब कि उन्होंने चार्वाक-दर्शन एवं बौद्ध तथा जैन सिद्धान्तों पर पर्याप्त लिखा है। ऐसा मानना असम्भव है कि इन विद्वान् दो भाइयों को तन्त्र के विषय में ज्ञान नहीं था। यदि कल्पना का सहारा लिया जाय तो ऐसा कहा जा सकता है कि जिन कारणों से बंगाल के राजा बल्लालसेन ने अपने दानसागर में देवीपुराण को छोड़ दिया था, उन्हीं कारणों से सम्भवत: इन विद्वान् भाइयों ने तन्त्रों की चर्चा नहीं की, इतना ही नहीं; तब तक तन्त्र-ग्रन्थ समाज में पर्याप्त रूप से अरुचिकर हो चुके थे और विद्वान् लोग उनका विरोध करने लग गये थे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org