________________
तान्त्रिक सिद्धान्त एवं धर्मशास्त्र काव । इसके उपरान्त गुरु शिष्य को एक नया नाम देता है जिसका आनन्दनाथ से अन्त होता है। शिष्य गुरु एवं अन्य उपस्थित कौलों का सम्मान करता है। यह उत्सव (कृत्य) ६, ७, ५, ३ रातों या एक रात तक चलता है । देखिए तन्त्रराजतन्त्र (२०५८-७२), ज्ञानसिद्धि (१७) । और देखिए 'सेकोद्देशटीका' की भूमिका (मैरियो ई० करेल्ली द्वारा सम्पादित एक बौद्ध तन्त्र-ग्रन्थ), जहाँ ईसाइयों के बपतिस्मा से मिलता-जुलता कृत्य वणित है । अहिर्बुध्न्यसंहिता (अध्याय ३६) में महाभिषेक की विधि वर्णित है। महाभिषेक से सभी रोग दूर हो जाते हैं, सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं और सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
दीक्षा के चार प्रकार हैं-क्रियावती, वर्णमयी, कलावती एवं वेधमयी । वास्तुयाग, मण्डप, कुण्डों एवं स्थण्डिल के निर्माण के विषय में विस्तृत नियम दिये हुए हैं, जिनका उल्लेख यहाँ नहीं किया जा रहा है।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org