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तान्त्रिक सिद्धान्त एवं धर्मशास्त्र
उपासना करते हैं उन्हें किसी अन्य साधना की आवश्यकता नहीं है, केवल इसी मन्त्र की सिद्धि से आत्मा ब्रह्म में समाहित हो सकता है १०२ । स्पष्ट है—-मोक्ष कई लक्ष्यों में एक लक्ष्य था । दूसरा लक्ष्य था अलौकिक या रहस्यवादी शक्तियों की प्राप्ति । प्रपञ्चसार ने आठ सिद्धियों की चर्चा की है और कहा है कि आठ सिद्धियों वाला व्यक्ति मुक्त कहा जाता है और उसे योगी की संज्ञा मिली है १०३ । सिद्धियों का सिद्धान्त प्राचीन है और उसका उल्लेख आपस्तम्ब-धर्मसूत्र ( २।६।२३।६-७ ) में हुआ है । योगसूत्रभाष्य में आठ सिद्धियों के नाम आये हैं और उनकी व्याख्या हुई है १०४ । अणिमा ( एक अणु के समान हो जाना), लघिमा (हलका होकर ऊपर उठ जाना), महिमा ( पर्वत के समान विशाल या आकाश के समान हो जाना), प्राप्ति (सभी पदार्थों का सन्निकट हो जाना, यथा अंगुली से चन्द्रमा को छू देना ), प्राकाम्य ( कामना का अवरोध न होना, यथा पृथिवी में समा जाना और बाहर निकल कर ऐसा प्रकट होना मानो जल में प्रवेश हुआ था), वशित्व ( पंच तत्त्वों पर स्वामित्व ), ईशित्व ( तत्त्वों के निर्माण, समाहित होने या संगठन पर प्रभुत्व) एवं यत्र - कामावसायित्व ( अपनी इच्छा के अनुसार वस्तुओं को बना देना, यथा व्यक्ति यह कामना कर सकता है कि विष का प्रभाव अमृत हो, और वह वैसा हो जायगा ) । जिसे ये आठ सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं, वह सिद्ध कहलाता है। गीता ( १०।२६ ) में आया है कि कपिल सिद्धों में एक सिद्ध हैं ( सिद्धानां कपिलो मुनिः) । योगसूत्र (४।१ ) में सिद्धियों के पाँच प्रकार कहे गये हैं— जन्म, ओषधियों, मन्त्रों, तपों एवं समाधि से उत्पन्न होने वाली ( जन्मौषधि - मन्त्र - तपः - समाधिजाः सिद्धयः) । मन्त्रों से अन्य बातें भी प्राप्त की जाती थीं, यथा -- षट् क्रूर कर्म तथा नारी को कामासक्त करना । इससे प्रकट है कि केवल तान्त्रिक ही नहीं, प्रत्युत वे लोग भी, जो योगाभ्यास में विश्वास करते थे, मन्त्रों में ऐसा विश्वास करते थे कि वे योगियों को अलौकिक शक्ति देते हैं। योगसूत्र में ऐसी व्यवस्था है कि कुछ सिद्धियां (यथा - ३1३७ में) समाधि में अवरोध उत्पन्न करती हैं और ये सिद्धियाँ केवल उन लोगों के लिए हैं जो तन्मयावस्था से व्युत्थित रहते हैं । याज्ञवल्क्यस्मृति ( ३।२०२-२०३ ) में आया है कि अन्तर्धान हो जाने, दूसरे के शरीर में प्रवेश कर जाने, थोड़े काल के लिए अपना शरीर छोड़ देने, मनोनुकूल पदार्थ की उत्पत्ति कर देने की शक्ति तथा अन्य शक्तियाँ योग द्वारा सिद्धि प्राप्ति की परिचायक हैं, जो लोग योग-सिद्धि कर लेते हैं अपने नाशवान् शरीर का त्याग कर ब्रह्म में अमर हो जाते हैं ।
१०२. परब्रह्मोपासकानां किन्यैः साधनान्तरैः । मन्त्रग्रहणमात्रेण देही ब्रह्ममयो भवेत् । महानिर्वाणतन्त्र ( ३।२३-२४) । मन्त्र यों है : 'ओं सच्चिदेकं ब्रह्म' जिसके पूर्व विद्या, माया या श्री के लिए क्रम से ऐं, ह्रीं या श्रीं लगता है ( ३।३५-३७ ) ।
१०३. अणिमा महिमा च तथा गरिमा लघिमोशिता वशित्वं च । प्राप्तिः प्राकाम्यं चेत्यैष्टैश्वर्याणि योगयुक्तस्य ॥ अष्टैश्वर्य समेतो जीवन्मुक्तः प्रवक्ष्यते योगी । प्रपञ्चसार ( १६ । ६२-६३) । आधुनिक काल में हवा में हलका हो कर उठ जाने के व्यक्तिगत अनुभव के लिए देखिए डा० अलेक्जेण्डर कॅनन कृत 'दि इनविजिबुल इंफ्लुएंस' (१५वाँ मुद्रण, १६३५), अध्याय २, पृ० ३६-४१ । कल्पतरु (मोक्षकाण्ड, पृ० २१६-१७) ने प्राचीन लेखक देवल से एक लम्बा गद्यवचन उद्धत किया है जिसमें ८ सिद्धियों या विभूतियों (गरिमा के स्थान पर यत्रकामावसायित्व आया है) का उल्लेख है ।
१०४. विभूतिर्भूतिरैश्वर्यमणिमादिकमष्टधा । अमरकोश; ततोऽणिमादिप्रादुर्भावः कायसम्पद्धमनिभिधातश्च । योगसूत्र (२०४४) ; जन्मौषधि मन्त्र - तपः समाधिजाः सिद्धयः । योगसूत्र ( ४१ ) । भाष्य में आया है 'मन्त्रैराकाशगमनाणिमादिसिद्धिः ।
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