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तान्त्रिक सिद्धान्त एवं धर्मशास्त्र की अर्हताओं का उल्लेख किया है, यथा--उसे देवी एवं माताओं की प्रतिमाओं का सर्वश्रेष्ठ स्थापक होना चाहिए, उसे पूजा के वाम (विरोधी) एवं दक्षिणमार्गों का ज्ञान होना चाहिए, उसे मातृसम्बन्धी वेद का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए, उसे पंचरात्रार्थों में प्रवीण होना चाहिए और मातृ-तन्त्रों का विशारद होना चाहिए। कालिकापुराण के कई अध्यायों (५४) में मन्त्रों, कवचों, मुद्राओं, न्यासों आदि का उल्लेख है । भागवतपुराण एवं अग्नि (३७२।३४) ८८ में स्पष्टत: आया है कि देवताओं एवं विष्णु की पूजा तीन प्रकार की होती है-चैविकी तान्त्रिकी एवं मिश्र, जिनमें प्रथम एवं ततीय तीन उच्च वर्गों के लिए एवं द्वितीय शुद्रों के लिए है। भागवतपुराण (११।३।४७ एवं ४६) ने तन्त्रों में उल्लिखित केशव-पूजा को उसके लिए व्यवस्थित माना है जो हृदय की ग्रन्थि (गाँठ या क्लेश) दूर कर देना चाहता है ८९। इसने भी वैदिकी एवं तान्त्रिकी दीक्षा (११११११३७) का उल्लेख किया है और तान्त्रिक विधियों यथा--विष्णु के अंगों, उपांगों, आयुधों एवं अलंकरणों की ओर निर्देश किया है १० । कुछ पुराणों एवं मध्यकालीन निबन्धों ने तान्त्रिकों के मंत्रों, जप, न्यास, मण्डल, चक्र, यन्त्र तथा अन्य समान बातों का उपयोग किया है। उदाहरणों द्वारा इसे हम आगे उल्लिखित करेंगे। १६ उपचारों ऐसे सरल एवं सामान्य विषय में वर्षक्रियाकौमुदी (पृ० १५६) एवं एकादशीतत्त्व ने प्रपंचसारतन्त्र (६।४१-४२) से उद्धरण लिया है।
पुराणों एवं कुछ स्मृतियों ने सभी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ५, ६, ८, १२, १३ एवं अधिक अक्षरों के मन्त्रों की व्यवस्था की है। कुछ मन्त्र नीचे पादटिप्पणी में दिये जा रहे हैं ११। मेधातिथि या.
८८. वैदिकस्तान्त्रिको मिश्री विष्णो त्रिविधो मखः । त्रयाणामीप्सिते कविधिना हरिमर्चयेत् । अग्नि (३७२।३४)।
८६. य आशु हृदयग्रन्थिं निजिहीर्षुः परात्मनः। विधिनोपचरेद् देवं तन्त्रोक्तेन च केशवम् ।। लब्धानुग्रह आचार्यात्तन सन्दर्शितागमः। पिण्डं विशोध्य संन्यासकृतरक्षोर्चयेद्धरिम् ।। भागवत (१।३।४७ एवं ४६)। यहाँ पर 'पिण्डशोधन' महानिर्वाणतन्त्र (५१६३-१०५) ऐसे तन्त्रों में व्यवस्थित 'भूतशुद्धि' को ओर निर्देश करता है जो पूजाप्रकाश (पृ० १२६-१३३) ऐसे पश्चात्कालीन मध्यकालीन में भी आ गया है। न्यास भी दुष्टता से रक्षा करने के लिए उल्लिखित है।
६०. तान्त्रिकाः परिचर्यायां केवलस्य श्रियः पतेः। अंगोपांगायुधाकल्पं कल्पयन्ति यथव हि। भागवत (१२।१२)।
६१. देखिये शारदातिलक (११७३) जहाँ ५ या इससे अधिक अक्षरों के मन्त्रों का उल्लेख है । एक पञ्चाक्षर मन्त्र है 'नमः शिवाय' (लिंगपुराण ११८५); यही छह अक्षरों वाला मन्त्र हो जाता है जब 'ओम्' पहले लगा दिया है। छह अक्षरों वाले अन्य मन्त्र हैं 'ओं नमो विष्णवे (वृद्धहारीतस्मृति ६।२।३), ओं नमो हराय (हेमाद्रि, व्रत, भाग १, पृ० २२७), श्रीरामरामरामेति । 'खखोल्काय ममः' आदित्य का मन्त्र है (हेमाद्रि द्वारा भविष्यपुराण से उद्धृत, देखिये व्रत, २, पृ० ५२१)। कल्पतरु (व्रत, ६ एवं १६६) ने भी इसको उद्धृत किया है और पृ० १६ पर निम्बसप्तमी में इसे मूलमन्त्र कहा है, जिसका वर्णन भविष्य, ब्राह्मपर्व (अध्याय २१५ एवं २१६) से लिया गया है। आठ अक्षरों वाले मन्त्र ये हैं-ओं नमो नारायणाय (नारदपुराण १।१६।३८-३६, ब्रह्मपुराण ६०।२४, वराहपु० १२०।७), ओं नमो वासुदेवाय (वैखानसस्मार्तसूत्र ४।१२, नरसिंहपु० ६३।६, अपरार्क द्वारा उद्धृत, मत्स्य पु० १०२।४, स्मृतिचन्द्रिका द्वारा मूलमन्त्र के रूप में उद्धृत, १, पृ० १८२), १२ अक्षरों वाला एक मन्त्र
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