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धर्मशास्त्र का इतिहास
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यथा यम, नियम एवं आसन को छोड़ दिया गया है और एक नवीन अंग 'अनुस्मृति' जोड़ दिया गया है। यम किसी प्रकार ग्राह्य नहीं था क्योंकि गुह्यसमाज की दृष्टि में साधक द्वारा मांसभक्षण, मैथुन, असत्य भाषण आदि का प्रयोग अनुचित नहीं था और योगसूत्र में यम हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह ( भेंट स्वीकार न करना) । नियम भी अग्राह्य थे, क्योंकि पाँच नियमों (शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान) में स्वाध्याय ( वेदाध्ययन) एवं ईश्वरप्रणिधान ( ईश्वर के प्रति भक्ति या ईश्वर का चिन्तन) भी सम्मिलित हैं जो बौद्धधर्म में अग्राह्य है । बहुत-से बौद्ध वेद की भर्त्सना करते थे और परमात्मा को नहीं मानते थे । गुह्यसमाज० ने बुद्धत्व शीघ्र प्राप्त करने के लिए योग की क्रियाओं का समावेश किया है। मांस एवं मैथुन की अनुमति के पीछे धारणा यह थी कि योगी को, जब तक वह बुद्धत्व के लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर लेता तथा अपने मानसिक जीवन का विकास नहीं कर लेता, तब तक, अपने कार्य-कलापों के प्रति उदासीन रहना चाहिए और उसे सारे सामाजिक नियमों एवं परम्पराओं की उपेक्षा कर देनी चाहिए ५१ । वज्रयान की दूसरी नवीन प्रक्रिया थी मुक्ति के लिए योग द्वारा शक्ति की उपासना का उपयोग । गुह्यसमाज० में आया कि यदि छह, मासों तक प्रयत्न करने के उपरान्त भी ज्ञान न प्राप्त हो तो साधक को यह प्रयत्न तीन बार और करना चाहिए, यदि ऐसा करने पर भी सम्बोधि न प्राप्त हो तो उसे हठयोग करना चाहिए और तब वह योग द्वारा सत्य ज्ञान की प्राप्ति करेगा । एक अन्य नवीन प्रयोग था पाँच ध्यानी- बुद्धों का सिद्धान्त ५२ । ये ध्यानी- बुद्ध, बुद्ध भगवान् से प्रकट हुए। ये उन पाँच स्कन्धों या मौलिक तत्त्वों के परिचायक हैं, जिनसे यह सृष्टि बनी हुई है और इनमें से प्रत्येक एक शक्ति से सम्बन्धित है । गुह्यसमाज की शिक्षा यह है कि यदि मानसिक शक्ति एवं अलौकिक सिद्धियाँ विकसित करनी हैं तो जो लोग अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए यौगिक क्रियाएँ करते हैं उनसे स्त्रियों का सम्बन्ध अवश्य होना चाहिए। इस प्रकार बुद्ध की 'वह भविष्यवाणी पूर्ण हो गयी, जो उन्होंने अपने प्रिय शिष्य आनन्द से कही थी कि यदि संघ में स्त्रियों का आगमन हो गया तो उनकी पद्धति केवल ५०० वर्षों तक ही चलेगी, नहीं तो वह एक सहस्र वर्षों तक चलेगी ( चुल्लवग्गा, १०।१।६, विनय टेक्ट्स जिल्द ३, सै० बु० ई०, २०, पृ० ३२५) ।
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५०. अहिंसा-सत्य अस्तेय - ब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः । शौच - सन्तोष- तपः - स्वाध्याय - ईश्वर प्राणिधानानि नियमाः । योगसूत्र ( २२३० - ३१) ॥ योग के आठ अंग ये हैं-यम-नियम- आसन-प्राणायाम - प्रत्याहार-धारणाध्यान - समाधयोऽष्टावङ्गानि । योगसूत्र ( २२६ ) ।
५१. भक्ष्याभक्ष्यविनिर्मुक्तः पेयापेयविवर्जितः । गम्यागम्य विनिर्मुक्तो भवेद्योगी समाहितः ॥ ज्ञानसिद्धि (१०१८ ) ; गम्यागम्यादिसंकल्पं नात्र कुर्यात् कदाचन । मायोपमादियोगेन भोक्तव्यं सर्वमेव हि ॥ वज्रोपाय० ( पृ० २३, श्लोक २८ ) ।
५२. देखिये डा० भट्टाचार्य की गुह्यसमाजतन्त्र पर भूमिका ( पृ० १६ ), एवं 'बुद्धिस्ट इसोटेरिज्म' की भूमिका ( पृ० ३२-३३, ७०, ८०-८१, १२१, १२८ - १३० ) जहाँ ध्यानि बुद्धों, उनकी शक्तियों, कुलों, कुल के अर्थ आदि का उल्लेख है। बुद्धिस्ट इसोटेरिज्म के पृ० ३२ पर डा० भट्टाचार्य ने लिखा है - 'हमने यह पहले उल्लिखित कर रखा है कि बौद्धधर्म पहले के ब्राह्मणधर्म के विरोध में एक अभिग्रह अथवा चुनौती था। अब यह तान्त्रिक बौद्धधर्म को चुनौती थी, बुद्ध और आरम्भिक बौद्धधर्म के विरोध में । बुद्ध द्वारा सभी प्रकार के सांसारिक सुख भोग, यथा--मद्य, मांस, मत्स्य, मैथुन एवं तामसिक भोजन वजित थे । पश्चात्कालीन तान्त्रिकों ने इन सभी का समावेश अपने धर्म में किया और उन्होंने और आगे बढ़ कर ऐसी उद्घोषणा कर दी कि बिना इनके मुक्ति असम्भव है ।
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