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अध्याय ૨૭
भावी वृत्तियाँ
सन् १७५७ में प्लासी के युद्ध के उपरान्त बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा का शासन जिस पर अंग्रेजों का दबाव मात्र सन् १७६५ से ही पड़ रहा था, सीधे अंग्रेजी आधिपत्य के अन्तर्गत आ गया । सन् १८९८ में जब बाजीराव पेशवा द्वितीय पराजित होकर वृत्तिभोगी ( पेंशनयापता ) हो गया तो अंग्रेजों का प्रभुत्व सम्पूर्ण भारत में हो गया, केवल पंजाब अभी स्वतन्त्र था, किन्तु वह भी सन् १८४५ में अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। अंग्रेजों ने भारत को सन् १६४७ में छोड़ दिया। इस प्रकार अंग्रेजों ने भारत के अधिक भाग पर १८० वर्षों तक, पंजाब को छोड़कर सम्पूर्ण भारत पर लगभग १३० वर्षों तक तथा पंजाब पर लगभग १०० वर्षों तक राज्य किया । इन अवधियों में हिन्दू-समाज पर ब्रिटिश आधिपत्य का प्रभाव अत्यधिक पड़ा। शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक क्षेत्रों में हिन्दू-समाज विदेशी प्रभाव से आक्रान्त हो उठा। ब्रिटिश राज्य के इन वर्षो में जो परिवर्तन प्रकट हुए वे इसके पूर्व की कई शतियों के परिवर्तनों से कहीं अधिक एवं कई गुने बड़े थे । अंग्रेजी राज्य के आगमन के साथ सम्पूर्ण भारत में एक नये प्रकार का शासन स्थापित हुआ, पाश्चात्य ढंग के न्यायालय स्थापित हुए, सभी भारतीयों पर समान रूप से एक ही प्रकार के व्यवहार ( कानून ) व्यवस्थित किये गये, आधुनिक व्यक्तिवादी स्वातन्त्र्य की भावना का प्रवेश हुआ, नगरों एवं बड़ी-बड़ी बस्तियों में पाश्चात्य जीवन के ढंग निखरने लगे, एक ऐसी शिक्षा-व्यवस्था स्थापित हुई जिसने सभी भारतीयों को समभूमि पर रख दिया, समाचार-पत्रों, आवागमन के विकसित अच्छे साधनों, आधुनिक विज्ञान, अंग्रेजी साहित्य तथा कलाओं आदि के अध्ययन आदि ने एक नये जीवन की छटा उपस्थित की ।
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इस अध्याय में हम उपर्युक्त परिवर्तनों के विषय में कुछ लिखने का उद्देश्य नहीं रखते। बहुत ही संक्षेप में हम केवल उन प्रभावों की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करेंगे जो आधुनिक विज्ञान एवं नये विचारों, भारतीय लोकतान्त्रिक संविधान, धर्म निरपेक्ष राज्य की भावना, समाजवादी समाज के ढाँचे, आर्थिक योजना, विधान निर्माण, जनसंख्या की वृद्धि एवं उसको रोकने के साधनों के फलस्वरूप हिन्दू समाज तथा इसके प्राचीन आदर्शो एवं जीवन-मूल्यों पर पड़ रहे हैं या पड़ सकते हैं । किन्तु उपर्युक्त विषयों पर प्रकाश डालने के पूर्व हम अति संक्षेप में उन बातों का उल्लेख करेंगे जो स्वतन्त्रता की प्राप्ति के पूर्व ब्रिटिश भारत में घटी थीं। लार्ड रिपन ने सन् १८८२ में स्थानीय शासन की नींव डाली, जिसके फलस्वरूप नगरों एवं जनपदों में क्रम से नगरपालिकाओं एवं स्थानीय निकायों की स्थापना हो सकी। इस प्रकार सन् १७६५ के लगभग १२० वर्षों के उपरान्त, जब ब्रिटिश राज्य की स्थापना सर्वप्रथम भारत के अधिकांश भागों में हो चुकी थी, अंग्रेजों ने ऐसा सोचा कि शासित लोगों को अपने (अमहत्त्व - पूर्ण एवं हलके-फुलके ) कार्यों को सँभालने का अवसर दिया जाय । तब तक ब्रिटिश लोगों की उपनिवेशवादिता अपनी चरम सीमा तक पहुँच गयी थी । अंग्रेज लोग भारत से कपास जैसा कच्चा माल इंगलैण्ड भेजने लगे और उससे मैनचेस्टर आदि स्थानों में वस्तुएँ तैयार करके पुनः भारत में ही खपाने लगे। अंग्रेज निर्माताओं के
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